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आस्तिक और नास्तिक में अंतर | आस्तिकता की कहानी

अगर “ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास” की दृष्टि से देखा जाये तो दुनिया में दो प्रकार के लोग होते है – एक आस्तिक, दूसरा नास्तिक । आस्तिक उसे कहते है जो ईश्वर के अस्तित्व को मानता है । इसके विपरीत नास्तिक उसे कहते है जो ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानता ।

क्या ईश्वर का अस्तित्व है ?

ईश्वर के अस्तित्व को पूर्णतः स्वीकारना और नकारना दोनों ही लगभग असंभव है । इसलिए किसी भी व्यक्ति का पूर्णतः आस्तिक और नास्तिक होना भी असंभव है । इसीलिए आस्तिकता और नास्तिकता के बीच एक भ्रम बना हुआ है । इसी भ्रम को तोड़ने के लिए यह लेख लिखा गया है । ईश्वर के अस्तित्व को लेकर एक विस्तृत लेख अलग से लिखा जायेगा ।

यहाँ मेरी आस्तिकता की परिभाषा केवल इतनी है कि “ हम हमारे अंतःकरण में स्थित परमात्मा को माने और उसका अनुसरण करें ।”

आस्तिक सही या नास्तिक ?

कोई व्यक्ति आस्तिक है, किन्तु जरुरी नहीं कि वह सही हो । ठीक ऐसे ही कोई व्यक्ति नास्तिक है, इसका मतलब यह नहीं कि वह गलत है । किसी भी इन्सान के सही या गलत होने का निर्धारण उसके गुण, कर्म और स्वभाव तथा चिंतन, चरित्र और व्यवहार से किया जाता है, न कि उसकी मान्यता से ।

यदि आप सोच रहे है कि आस्तिकता किसी व्यक्ति के सही होने का प्रमाणपत्र है तो आप गलत सोच रहे है ।

जब तक आस्तिकता को आत्मसात न किया जाये । नास्तिक बने रहना अधिक श्रेयस्कर है । स्वामी रामतीर्थ कहते है कि अधुरा आस्तिक बनने से नास्तिक बने रहना अच्छा है ।

वास्तव में गहराई से यदि देखा जाये तो तीर्थ स्थानों पर जितने आस्तिक लोगों का मेला लगता है, उसमें से अधिकांश लोग छुपे हुए नास्तिक होते है ।

छुपा हुआ नास्तिक किसे कहते है ?

कुछ लोग होते है जो सार्वजनिक रूप से ईश्वर के अस्तित्व को नकार देते है, उन्हें स्पष्ट नास्तिक कहा जा सकता है । किन्तु जो लोग बाहर से आस्तिक और आध्यात्मिक होने का दिखावा करते है, किन्तु जिनके गुण – कर्म – स्वभाव नास्तिकों की तरह होते है, उन्हें छुपे हुए नास्तिक कहते है । ऐसे लोग ईश्वर और धर्म की आड़ में अपना धंधा चलाते है ।

आस्तिकता और नास्तिकता में क्या अंतर है ?

असल में आस्तिकता और नास्तिकता में बहुत ही मामूली सा अंतर है । जिसे पकड़ने के लिए गहन स्वाध्याय की आवश्यकता है । आप समझते है कि आप आस्तिक है । लेकिन खुद से पूछिये ! “ क्या मैं आस्तिक हूँ ?, क्या मैं ईश्वर के अस्तिव को मानता हूँ ?” अगर आप ईश्वर के अस्तित्व को मानते है तो फिर आप कोई भी गलत कर्म नहीं करते होंगे ? यदि करते है तो फिर आप ईश्वर को कहाँ मानते है ?

क्या एक बच्चा अपने बाप के सामने गलत कार्य कर सकता है ? यदि नहीं तो फिर आप कैसे ईश्वर से छुपे रह सकते है ? और यदि आप सोचते है कि आप ईश्वर की आँखों में धुल झोंक देंगे तो फिर आप बहुत बड़ी गलतफहमी में है ।

यदि स्वयं से ईमानदारी से प्रश्नोत्तरी की जाये तो हम पाएंगे कि हम भी छुपे हुए नास्तिक है । इस बात को हर कोई नहीं समझ पाता । जिसने समझ लिया वह इसे हृदयंगम नहीं कर पाता और जो इसे हृदयंगम करने की कोशिश करता है, उसके सामने इतनी समस्याएँ आती है कि वह स्वयं को कमजोर महसूस करता है । लेकिन इन सबके बावजूद जो तटस्थ होकर केवल ईश्वर को समर्पित हो जाता है । असल में वही सच्चा आस्तिक है ।

इस लेख को पढ़कर हो सकता है आपको लगे कि आप नास्तिक है । लेकिन मैं न तो आपको निराश करना चाहता हूँ, न ही नास्तिक बनाना चाहता हूँ । मैं केवल इतना चाहता हूँ कि आप झूठी आस्तिकता के भ्रम को तोड़े और सच्ची आस्तिकता को अपनाएँ । जैसाकि इस चोर के साथ हुआ –

मालिक ने देख लिया – एक चोर की कहानी

एक मामूली सा चोर था, जो लोगों के खेतों से धान चुराया करता था । चोर के परिवार में उसकी पत्नी और उसका एक बेटा रहता था ।

आज पहली बार चोर ने सोचा कि अपने बेटे को भी चोरी करना सिखाना चाहिए । वह अपने बेटे को साथ लेकर एक खेत में चोरी करने गया । उसने बेटे को खेत के एक कोने पर ऊँची जगह बिठा दिया और कहा कि “ मालिक देखे तो चिल्लाकर मुझे बताना और भाग जाना ।”

चोर गया खेत में और धान काटने लगा । कुछ ही देर में चोर का बेटा चिल्लाया – “ मालिक ने देख लिया……. मालिक ने देख लिया ………..।”

चोर तुरंत उठकर भागा । आगे – आगे बेटा पीछे – पीछे चोर । कुछ ही दूर जाने पर चोर ने देखा कि कहीं कोई नहीं है । उसने बेटे को रोका और पूछा – “ अरे किसने देख लिया ?”

बेटे ने ऊपर की ओर इशारा करके कहा – “ मालिक ने देख लिया ।”

चोर ने झुंझलाकर कहा – “ अरे मुर्ख ! मैं उस मालिक की बात नहीं कर रहा हूँ, खेत का मालिक कहाँ है ?”

बेटा बोला – “ बाबा ! आप ही कहते है, वह सबका मालिक है । फिर खेत का मालिक मैं किसी और को क्यों मानू ।”

चोर बोला – “ परन्तु बेटा ! हमें खतरा केवल इस खेत के सांसारिक मालिक से है । ऊपर वाले से हमें कोई खतरा नहीं ”

चोर का बेटा बोला – “ एक बात बताइए बाबा ! क्या इस खेत का मालिक उस ऊपर वाले मालिक से बड़ा है ?”

चोर बोला – “ नहीं तो !”

बेटा बोला – “ तो फिर बाबा ! आप ही बताइए, जो कार्य इस मालिक की नज़रों में गलत है, वो उसकी नजर में सही कैसे हो सकता है ?, उल्टा वह बड़ा है तो उसकी नज़रों में तो यह कार्य ज्यादा गलत होना चाहिए ।”

बाबा ! माँ कहती है, “ गलत, हमेशा गलत होता है, फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा, क्या फर्क पड़ता है । जिस कार्य के करने से आत्मा में डर, लज्जा और अशांति हो, वह पाप है । क्या हम कोई अच्छा काम नहीं कर सकते ?”

आज बेटे ने बाप की आंखे खोल दी । उस चोर ने उसी दिन से चोरी का काम छोड़ दिया और जंगल से लकड़ियाँ काटकर बेचने लगा ।

वास्तव में अधिकांश लोग इस चोर की ही तरह भ्रम में जी रहे है । उन्हें लगता है कि सुबह – शाम मंदिर जाने और दो अगरबत्ती लगा देने से उन्हें आस्तिकता और आध्यात्मिकता का सर्टिफिकेट मिल जायेगा । लेकिन वह भ्रम में है यदि वह अपने गुण, कर्म, स्वभाव तथा चिंतन, चरित्र और व्यवहार को अपने इष्टदेव के अनुरूप बनाने की कोशिश नहीं करते ।

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