विषकन्या ने राजा को विष दिया

विषकन्या क्या होती है | विषकन्या की ऐतिहासिक कहानी

वैदिक साहित्य, लोक कथाओं और इतिहास के अनुसार विषकन्या उस स्त्री को कहा जाता है, जिसे बचपन से ही थोड़ा – थोड़ा विष देकर जहरीला बनाया जाता है । इन्हें विषैले वृक्ष और जीव – जंतुओं के बीच रहने का अभ्यस्त बनाया जाता है । इसी के साथ ही स्त्रियोचित गुणों जैसे गायन, नृत्य और संगीत की शिक्षा भी जाती है । इन्हें सभी प्रकार की छल विद्याओं में माहिर बनाया जाता है, ताकि राजाओं द्वारा इनका इस्तेमाल करके शत्रु राजा को छलपूर्वक मृत्यु के घाट उतारा जा सके ।

विषकन्या कई प्रकार से शत्रु राजाओं के शरीर में अपना विष पहुँचाने की अभ्यस्त होती है । जैसे विषकन्याओं का श्वास बहुत ही जहरीला होता है । यदि कोई उनका निश्वास अपने अन्दर ग्रहण करें तो कुछ ही क्षणों में वह बीमार हो सकता है या उसकी मृत्यु हो सकती है । विषकन्यायें अपने मुख में विष रखकर भी चुम्बन लेने के बहाने शत्रु के शरीर में विष पहुँचा सकती है ।

विषकन्या की ऐतिहासिक कहानी

इतिहास के अनुसार कौटिल्य शास्त्र के रचियता चाणक्य के सन्दर्भ में कहा जाता है कि उन्होंने कई बार मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के प्राणों की रक्षा की । जिनमें से कुछ हमले विषकन्याओं का प्रयोग करके भी किये गये थे । उन्हीं में से एक प्रसंग इस प्रकार है –

एक बार की बात है । नन्द वंश के तात्कालीन सम्राट धनानन्द के मंत्री ने एक षड्यन्त्र किया । उसने छलपूर्वक विजय अभियान से लौटकर आये हुए चन्द्रगुप्त मौर्य के स्वागत में एक विषकन्या को भेजा । किन्तु विषकन्या जैसे ही चन्द्रगुप्त के रथ के सामने आई, चाणक्य ने उसे रोक दिया और चन्द्रगुप्त के साथी राजा प्रवर्तक से कहा कि “ इस रूपवती स्त्री को तुम स्वीकार करो ।” राजा प्रवर्तक ने विषकन्या को स्वीकार कर लिया ।

राजा प्रवर्तक युद्ध में चन्द्रगुप्त मौर्य का सहयोगी था । अतः राज्य के नीति नियमों के अनुसार उसे आधे राज्य का स्वामी बनाया जाना था । किन्तु जैसे ही उसने विषकन्या का हाथ पकड़ा, विषकन्या के हाथों में लगा पसीना उसे लग गया । जिससे प्रवर्तक के शरीर में विष फ़ैल गया और वह बीमार पड़ गया । उसने मित्र चन्द्रगुप्त मौर्य को मदद के लिए बुला भेजा । चन्द्रगुप्त ने राज्य के सभी वैद्यों को उसकी चिकित्सा करने के लिए नियुक्त कर दिया । किन्तु जहर शरीर में इतना फ़ैल चूका था कि उसे नहीं बचाया जा सका और अंततः उसकी मृत्यु हो गई ।

इस घटना से कुछ इतिहासकार यह मतलब निकालते है कि चाणक्य ने जानबूझकर विषकन्या को राजा प्रवर्तक के पास भेजा था । उनका मानना है कि चन्द्रगुप्त की प्राण रक्षा के लिए राजा प्रवर्तक का मरना जरुरी था । राजनैतिक नियम के अनुसार जब किसी राज्य को दो राजाओं में आधा – आधा बांटा जाता है तो एक न एक दिन उनमें आपस में युद्ध अवश्य होता है । किन्तु यह महज एक अनुमान मात्र है ।

इस घटना के बाद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को भविष्य में विषकन्या और विष के प्रभाव से बचाने के लिए भोजन के साथ अल्प मात्रा में जहर देना शुरू कर दिया तथा दिन प्रतिदिन उसके आहार में विष की मात्रा बढ़ाते रहने की व्यवस्था की । ताकि चन्द्रगुप्त भविष्य में जाने – अनजाने में भी किसी विषकन्या के संपर्क में आये तो उससे सुरक्षित रह सके । इस प्रकार चन्द्रगुप्त विष के प्रभाव से पुर्णतः सुरक्षित था ।

एक दिन की बात है, जब सम्राट चन्द्रगुप्त भोजन कर रहे थे । तभी वहाँ उनकी गर्भवती महारानी का आगमन हुआ । महाराज को भोजन करते देख महारानी की भी इच्छा हुई कि महाराज के साथ भोजन करें । अपनी इच्छा के अनुरूप महारानी ने चन्द्रगुप्त की थाली में से भोजन का एक कौर उठाकर खा लिया । भोजन में मिले हुए विष के प्रभाव से महारानी कुछ ही क्षणों में मूर्छित हो गई ।

राजा चन्द्रगुप्त ने राजवैद्यों को बुलाया और महारानी के अचानक मूर्छित होने की बात बताई । किन्तु कोई भी महारानी के मूर्छित होने का वास्तविक कारण नहीं जानता था । तभी यह बात चाणक्य को पता चली । उन्हें पता था कि रानी मूर्छित क्यों हुई । उन्होंने तुरंत शल्य – चिकित्सकों को बुलाकर रानी के गर्भ में स्थित बालक को निकलवा लिया । बालक तो बच गया लेकिन महारानी की मृत्यु हो गई ।

महारानी के विषैला भोजन करने से बालक पर कोई खास असर नहीं हुआ लेकिन उसके ललाट पर एक नीला निशान बन गया था । माथे पर उभरे नीले निशान के कारण ही चन्द्रगुप्त ने उसका नाम बिन्दुसार रख दिया । आगे चलकर यही बिन्दुसार राज्य विस्तार और जैन धर्म के प्रचार के लिए प्रसिद्ध हुआ ।

इस प्रकार विषकन्याओं द्वारा छलपूर्वक शत्रु राजाओं की हत्या की जाती थी तथा राजाओं के शुभचिंतकों द्वारा उसकी सुरक्षा करने के लिए उन्हें भी प्रतिदिन अल्प मात्रा में विष देकर विषपुरुष बना दिया जाता था । ताकि विषकन्या का उन पर कोई खास प्रभाव न पड़े ।

आपको यह लेख पसंद आया हो तो facebook, twitter, whatsapp, telegram आदि पर अपने दोस्तों को शेयर करें । इस लेख के सम्बन्ध में कमेंट के माध्यम से आप अपने विचार भी व्यक्त कर सकते है ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *