चुहिया की शादी कहानी

चुहिया की शादी कहानी

किसी भी मनुष्य को अपने निजी विचार किसी दुसरे मनुष्य पर कभी भी थोपने नहीं चाहिए । अगर ऐसा किया भी गया तो विग्रह, विवाद और झगड़े के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला क्योंकि प्रत्येक मनुष्य की मनःस्थिति अलग – अलग होती है । अगर आप किसी मनुष्य से किसी विशेष प्रकार की आकांक्षाओं की अपेक्षा रखते है तो उसके अनुरूप आपको उसके विचारो को बदलना होगा । क्योंकि मनुष्य उन्हीं आदतों का चुनाव करता है जो उसकी मनःस्थिति के अनुरूप होती है । इसलिए आप केवल किसी भी प्राणी के विचारों को प्रेरित कर सकते है, सीधा उसकी आदतों को नहीं बदल सकते । इस बात को स्पष्टता से समझने के लिए हम आपको एक कहानी सुनाते है –


चुहिया की शादी

एक बार एक सिद्ध महात्मा नदी में स्नान कर रहे थे । तभी कहीं से एक चुहिया बहती हुई आई । चुहिया को डूबती देख महात्मा को दया आ गई और उन्होंने चुहिया को बाहर निकाल लिया । चुहिया बहुत छोटी थी, अगर उसे वही छोड़ते तो शायद चील, कौए उसे उठा ले जाते । इसलिए महात्मा उसे अपनी कुटिया में ले आये ।
अब चुहिया धीरे – धीरे बड़ी होने लगी । वह महात्माजी के चमत्कारों से बखूबी वाकिफ थी । सो एक दिन उसके मन में महात्माजी से कुछ पाने की इच्छा हुई । एकदिन अवसर पाकर वह बोली – “ महात्माजी ! मैं बड़ी हो गई हूँ, कृपा करके मेरा विवाह करवा दीजिये ।
महात्माजी बोले – “ अवश्य, बेटी !” उन्होंने सूरज की ओर इशारा करते हुए कहा – “ इससे करवा दे तेरा ब्याह ?”
चुहिया बोली – “ यह तो आग का गोला है और अग्नि बरसाता है, मुझे तो ठण्डे स्वभाव का दूल्हा चाहिए । सो इससे तो मैं शादी ना करूँ ।”
तब महात्माजी ने बादल की ओर इशारा करते हुए कहा – “ तब तो बादल ठीक रहेगा, यह ठण्डा भी है और सूरज से बड़ा भी, यह जब चलता है तो सूरज को भी छुपा लेता है ।” लेकिन चुहिया तो चुहिया थी, उसे बादल भी पसंद नहीं आया ।
तब महात्माजी ने पवन की ओर इशारा करते हुए कहा – “ इससे तुम्हारा विवाह करा देते है, यह बादल को भी उड़ा ले जाता है ।” लेकिन पवन भी चुहिया को पसंद नही आया ।
तब महात्माजी ने पर्वत की ओर इशारा करते हुए कहा – “ यह पवन से भी बड़ा है, जो उसके रुख को पलभर में बदल देता है ।” लेकिन चुहिया को पर्वत भी कहाँ पसंद आनेवाला था ।
तब महात्माजी बोले – “ अब तू ही बता, तेरा ब्याह किसके साथ करें ?”
तब चुहिया ने एक पहाड़ में जोर शोर से बिल बनाते एक मोटे चूहे हो देखकर कहा – “ मेरी शादी आप इसके साथ करा दीजिये ।”
उस मोटे चूहे को बुलाकर महात्माजी ने चुहिया की शादी कर दी । चुहिया ख़ुशी – ख़ुशी उस चूहे के साथ चली गई ।
शिक्षा – “ चुहिया की शादी ” तो महज एक कहानी है, लेकिन इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में जब कभी किसी वस्तु या व्यक्ति का चुनाव किया जाता है तो हमेशा यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि “ उस वस्तु या व्यक्ति का चुनाव किसलिए किया जाना है ?”
अक्सर लोग रंग – ढंग और शकल सूरत देखकर जीवनसाथी का चुनाव कर लेते है, बाद में जब उनके विचार और मनःस्थिति नहीं मिलते है तो विग्रह, विवाद और झगड़े उत्पन्न हो जाते है । यही झगड़े कभी तलाक तो कभी आत्महत्या का रूप ले लेते है ।
इसीलिए पंडित श्री राम शर्मा आचार्य कहते है कि “ समान विचारों का साथी मिले तो विवाह करने में कोई हर्ज नहीं ।”
अतः मनुष्य उन्हीं परिस्थितियों, व्यक्तियों और मित्रों का चुनाव करता है जो उसकी मनःस्थिति के अनुरूप हो ।
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