सफलता का रहस्य | शिक्षाप्रद कहानी

एक बार एक गाँव में अनंग नाम का एक बालक रहता था । एक दिन अनंग और उसके पिता एक बैलगाड़ी में अनाज लेकर नगर ले जा रहे थे । गाँव से कुछ दूर निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया एक गड्डे में धस गया । अनंग और उसके पिताजी ने बहुत कोशिश की, किन्तु वह बैलगाड़ी का पहिया निकालने में असमर्थ रहे । थक हारकर एक पेड़ की छाव में जा बैठे ।

थोड़ी ही देर बाद अनंग ने देखा कि नदी की ओर से स्नान करके भोलू पहलवान आ रहा है । वह तुरंत दोड़कर उसके पास गया और बोला, “ भोलू भैया ! हमारी बैलगाड़ी का पहिया निकालने में हमारी मदद कीजिए ।”

भोलू – कहाँ है बैलगाड़ी ?

अनंग हाथ से इशारा करते हुये बोला – वो वहाँ रास्ते में पड़ी है । 

भोलू पहलवान बैलगाड़ी की ओर चल दिया जैसे कि उसे किसी ने कुश्ती के लिए ललकारा गया हो । अनंग अपने पिताजी को बुलाने गया । जब अनंग लौटकर बैलगाड़ी की ओर आया तो उसने देखा कि भोलू भैया ने अकेले ही  बैलगाड़ी का पहिया खिलोने की तरह उठाकर खड्डे से बाहर रख दिया । अनंग को यह देख बड़ा आश्चर्य हुआ । वह यह तो जानता था कि भोलू भैया पहलवान है किन्तु उसे नहीं पता था कि बैलगाड़ी उनके लिए खिलौना है ।

उसने सहज उत्सुकतावश भोलू भैया से पूछा – भोलू भैया ! क्या मैं भी आपकी तरह शक्तिशाली हो सकता हूँ ?

भोलू पहलवान बोला – हाँ ! क्यों नहीं , किन्तु उसके लिए खूब सारा व्यायाम करना पड़ेगा
इतने में अनंग के पिताजी आ गये । उन्होंने भोलू को धन्यवाद कहा और बैलों को गाड़ी में जोतने लगे ।
दोनों बाप – बेटे अपना अनाज नगर बेचकर आ गये किन्तु तब से लेकर अब तक अनंग पहलवान बनने के बारे में सोचता रहा । पहलवानी का भुत उसके दिमाग में ऐसा घुसा कि कब नगर जाकर वापस आये उसे कुछ ठिकाना ही नहीं रहा । रास्ते भर वह पहलवानी के सपने देखता रहा ।

जैसे ही वह गाँव पहुँचा, दोड़कर भोलू भैया…. भोलू भैया ….. चिल्लाता हुआ भोलू पहलवान के घर गया ।

भोलू – क्या हुआ, अनंग ? ऐसे पागलों की तरह क्यों चिल्ला रहे हो ?

अनंग – भोलू भैया ! मुझे व्यायाम सिखना है ।

भोलू – यह भी कोई व्यायाम करने का समय है, भला । जाओ सुबह आना ।
अनंग भी कहाँ का मानने वाला था । वह ज़िद पर उतर आया । हार मानकर भोलू भैया ने उसे कुछ व्यायाम बता दिए  और कल सुबह आने को कहा ।

ख़ुशी – ख़ुशी अनंग घर चला आया । उत्साह में आकर उसने जितना सिखा उतना ही अनवरत करना शुरू कर दिया । यह सब उछल – कूद करते देख माँ ने उसे मना किया, किन्तु वह नहीं माना, परिणाम यह हुआ कि दुसरे दिन सुबह वह बिस्तर से उठ ही नहीं पाया । फिर माँ ने उसे खूब डांटा और कहने लगी, “ और करो व्यायाम, बड़े आये पहलवान बनने वाले ।”

माँ के यह कटु शब्द सुन अनंग को भोलू भैया पर क्रोध आया । वह यह सोचने लगा कि भोलू भैया ने जरुर मुझे गलत व्यायाम बताया होगा । अतः वह गुस्से से भरकर जैसे – तैसे चलकर भोलू भैया के घर गया । भोलू भोजन कर रहा था ।

अनंग – भोलू भैया ! आपने मुझे ये कैसा व्यायाम बताया ! मेरे सब हाथ पैर दर्द कर रहे है ?
भोलू बोला – अनंग ! हर काम को करने का एक निश्चित समय और परिमाण होता है । यदि हम असमय अनिश्चित मात्रा में कोई कार्य करेंगे तो वह अनर्थ ही उपस्थित करेगा । पहलवान बनना कोई एक दो दिन का कार्य नहीं है । इसके लिए दीर्घकाल तक धैर्य के साथ सतत प्रयास करना पड़ता है । तब जाकर सफलता मिलती है । यह अटल नियम है ।

यह नियम ना केवल पहलवानी के साथ लागू होता है, बल्कि दुनिया की हर एक सफलता के साथ लागू होता है । जीवन में कोई ठोस सफलता प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से धैर्य पूर्वक पूर्ण मनोयोग के साथ लगे रहना पड़ता है ।

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