sakaratmak soch ki kahani

सकारात्मक सोच की कहानी |सफलता का रहस्य

एक बार की बात है । एक गाँव में प्रज्ञा प्रकाश नाम के एक विद्वान महोदय रहते थे । धन – धान्य से संपन्न तो थे ही लेकिन ज्ञान उनके पास इतना था कि दूर – दूर से लोग अपनी समस्याओं का समाधान करने उनके पास आते थे । अपने अनुभव और ज्ञान से प्रज्ञा प्रकाश लोगों की समस्याओं का समाधान करते थे । इसलिए सभी उनको गुरूजी कहकर संबोधित करते थे ।

एक दिन की बात है । एक नवयुवक गुरूजी के पास आया और बोला – “ गुरूजी मुझे सफलता का रहस्य बताइए, मैं चाहता हूँ कि मैं भी आपकी तरह विद्वान बनकर अपनी गरीबी दूर कर सकूँ ।”

गुरूजी मुस्कुराएँ और उन्होंने उसे दुसरे दिन प्रातःकाल नदी किनारे मिलने के लिए बुलाया । युवक को भी नहाना था इसलिए वह भी अपने वस्त्र लेकर दुसरे दिन प्रातःकाल नदी किनारे पहुँच गया ।

गुरूजी उस युवक को नदी के गहरे पानी में ले गये और जहाँ पानी गले के ऊपर निकल गया तो उन्होंने उसे डुबो दिया । थोड़ी देर युवक छटपटाया फिर उन्होंने उसे छोड़ दिया । युवक हांफता – हांफता नदी से बाहर भागा । जब उसे सुध आई तो बोला – “ आप मुझे मारना क्यों चाहते है ?”

गुरूजी बोले – “ नहीं भाई, मैं तो तुम्हे सफलता का रहस्य बता रहा था । अच्छा बताओ ? जब मैंने तुम्हारी गर्दन पानी में डुबो दी थी, उस समय तुम्हें सबसे ज्यादा इच्छा किस चीज की हो रही थी ?”

युवक बोला – “ साँस लेने की ।”

गुरूजी बोले – “ बस यही सफलता का रहस्य है । जब तुम्हे सफलता के लिए ऐसी ही उत्कंठ इच्छा होगी, तब तुम्हे सफलता मिल जाएगी । इसके अलावा और कोई रहस्य नही है ।”

शिक्षा – दोस्तों ! आप जीवन में किसी भी चीज को पाना चाहते हो, तो उसे आपका बेइंतहा चाहना जरुरी है । मतलब हर समय आपको उसे पाने के बारे में सोचना चाहिए । अगर ऐसा नही है तो शायद आप उसे देर से पाओ या शायद ना भी पाओ ।

हमेशा रचनात्मक और विधेयात्मक सोचे, नकारात्मक ना सोचे

सकारात्मक सोच की कहानी | ध्यान का रहस्य

जब सोचने की बात आती है तो ज्यादातर लोग ये नहीं समझ पाते है कि क्या सोचना चाहिए । किसी भी सोच के दो पहलू होते है – एक विधेयात्मक दूसरा नकारात्मक । दोनों का मतलब लगभग एक सा होता है लेकिन इनका दिमाग पर असर ठीक उल्टा होता है । कैसे ? तो आइये देखते है ये कहानी –

एक बार की बात है, एक युवक ने ध्यान की बड़ी महिमा सुनी । उसने सुना कि ध्यान करने से मस्तिष्क की क्षमता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है । अतः उसने ध्यान की विधि सीखने की ठानी ली । ध्यान की विधि सीखने की इच्छा से वह एक योगीजी के पास पहुँच गया ।

युवक योगीजी से बोला – “ गुरूजी मुझे ध्यान की विधि सीखा दो ।”

योगीजी बोले – “ अच्छा ! सीखा देंगे, पहले ये बताओ कि तुम्हे कौनसी चीज़ सबसे ज्यादा अच्छी लगती है ?”

युवक बोला – “ मुझे गाय और बन्दर अच्छे लगते है ?”

योगीजी बोले – “ कोई एक चुन लो ?” अब वो फस गया, कभी गाय को सोचता है कभी बंदर को सोचता है । वो सोच ही रहा था, काफी देर हो गई ।

तब योगीजी बोले – “ तू गाय का ध्यान करना, बन्दर का मत करना ।”

युवक घर गया और रोज ध्यान का अभ्यास करने लगा । लेकिन एक समस्या हो गई, “ वह जितना बन्दर का ध्यान नहीं करने की कोशिश करता, उतना ही बन्दर उसके ध्यान में आता था । वह परेशान हो गया । गाय तो उसके ध्यान में टिकती नहीं, बन्दर ही बन्दर आता रहता । चार – पांच दिन बाद वह फिर से योगीजी के पास गया और बोला – “ गुरूजी एक दुविधा है, जितना मैं बंदर का ध्यान नहीं करने की कोशिश करता हूँ, उतना ही बन्दर मेरे ध्यान में आता है, गाय तो टिकती ही नहीं ।”

योगीजी मुस्कुराये और बोले – “ तूने मेरी बात के विधेयात्मक पक्ष को पकड़ने के बजाय नकारात्मक पक्ष को पकड़ लिया । अगर तू गाय का ध्यान करना है, इस बात को पकड़ लेता तो गाय का ध्यान ही करता, लेकिन तूने बन्दर का ध्यान नहीं करना, इस बात को पकड़ लिया । इसलिए केवल बन्दर का ध्यान ही आया ।”

शिक्षा – दोस्तों ! इस छोटी सी कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को हमेशा विधेयात्मक सोचना चाहिए । ध्यान का यही सूत्र है – “ क्या छोड़ना है, इसपर ध्यान देने की बजाय, क्या पकड़ना है, इसपर ध्यान दिया जाये तो हम बेहतर ध्यान कर पाएंगे ।”

हमेशा विधेयात्मक चीजों का ही प्रचार करना चाहिए । बहुत सी बार सोशल मीडिया में लोग कुछ विद्रोहियों के बहकावे में आकर नकारात्मक चीजों का प्रचार करना शुरू कर देते है । उन्हें लगता है कि वह सही कर रहे है, लेकिन उसका परिणाम काफी हद तक जनमानस पर गलत होता है ।

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