माला में 108 मनके ही क्यों होते है | Why 108 Beads in Mala in Hindi

किसी भी प्रकार की साधना और उपासना में मन्त्र जप का अपना ही अलग स्थान है । वैदिक मन्त्रों से लेकर प्रचलित राम, कृष्णा आदि कोई भी मन्त्र क्यों न हो, माला के माध्यम से मन्त्र जप को प्रभावी बनाया जाता है । वैसे मन्त्र जप बिना माला के भी किया जा सकता है, लेकिन माला के साथ जप करने का अपना ही अलग महत्त्व है ।

माला के मनको को लेकर आपके मन में यह प्रश्न अवश्य उठा होगा कि माला के मनके 108 ही क्यों होते है ? कम या ज्यादा क्यों नहीं होते ? इसके वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों ही कारण इस लेख में आपके लिए स्पष्ट किये जायेंगे । ताकि माला के माध्यम से जप करने के प्रति आपकी श्रद्धा और भी दृढ़ हो ।

अध्यात्म साधना में श्रृद्धा होना अति आवश्यक है । इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने यहाँ तक कह दिया है कि –

बिना दर्मैश्र्च यत्कृत्यं यच्चदानं विनोदकम्।

असंख्यया तु यजप्तं तर्त्सवं निष्फलं भवेत्॥ -(अंगिरा स्मृति)

अर्थात – बिना कुशा के धर्म अनुष्ठान, बिना जल स्पर्श के दान, बिना संख्या के जप, ये सब निष्फल होते है ।

सबसे पहली बात तो माला से जप करने से निश्चित संख्या में जप होते है, जिससे नियमित निश्चित समय तक साधना का नियम बना रहता है । दूसरी बात प्रतिदिन जप का जो संकल्प लिया जाता है, उससे जप पुरे होने पर संकल्पशक्ति बढ़ती है । तीसरी बात मन में यह शंका नहीं रहती कि अब उठू या तब उठू । इस तरह एक अकेली माला के प्रभाव से एक व्यवस्थित साधना सुचारू रूप से चलती रहती है ।

इसके साथ ही अंगूठे और अंगुली का एक सतत संघर्ष बना रहता है, जिससे के अद्भुत विद्युत् शक्ति की उत्पत्ति होती है, जो ह्रदय चक्र को प्रभावित करके मन को निश्छल कर देती है ।

यह तो वह बातें हो गई, जो कोई भी साधक मन्त्र साधना करके अनुभव कर सकता है । अब माला के १०८ मनके होने के वैज्ञानिक रहस्य पर चर्चा करते है ।

माला में १०८ मनके होने का वैज्ञानिक कारण

अंतरिक्ष विज्ञान या खगोलशास्त्र की दृष्टि से देखा जाये तो सम्पूर्ण आकाश में 27 नक्षत्रों को मान्यता प्रदान की गई है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक नक्षत्र के चार – चार चरण होते है । इस तरह 27 को 4 से गुणा करने पर 108 आता है । अतः इस तरह प्रकारांतर से देखा जाये तो एक माला का एक – एक मनका प्रत्येक नक्षत्र सहित उसके चरण का प्रतिनिधित्व करता है ।

  1. वेदादि शास्त्रों के अनुसार मनुष्य एक दिन – रात में 21600 श्वास लेते है –

षट् शतानि दिवारात्रौ सहस्त्राण्येक विंशतिः।

एतत्संख्यात्मकं मन्त्रं जीवो जपति सर्वदा॥ -(चूड़ामणि उपनिषद् 32/33)

  1. माला में 108 मनके होते है और एक उपांशु जप का फल सौ गुना होता है । इस तरह दिन के श्वास 10800 और रात्रि के श्वास भी 10800, कुलमिलाकर दिन – रात दोनों के करके 10800+10800= 21600 श्वास होते है । इस तरह यदि आप प्रातःकाल और सांयकाल की संध्या में यदि एक – एक माला जप भी करें तो उसका फल आपके द्वारा एक दिनरात में लिए गये श्वासों के बराबर होता है ।
  2. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि पृथ्वी को सूर्य के केंद्र में मानकर पृथ्वी के परिक्रमा तल को यदि ब्रह्माण्ड में चारों तरह फैलाया जाये तो एक पेटीनुमा संरचना बनती है । इस पेटीनुमा संरचना को यदि हम बारह भागों में विभाजित करें तो प्रत्येक भाग में कोई न कोई तारा समूह आता है । सूर्य और सारे ग्रह, पृथ्वी के सापेक्ष इन बारह तारा समूहों से गुजरते है । इन्हीं बारह तारा समूहों को बारह राशियाँ कहते है । तारा समूहों की आकृतिओं के आधार पर ही उनका नामकरण किया गया है । इस तरह नौ ग्रह और बारह राशियाँ मिलकर (9×12=108) 108 स्थितियाँ बनाते है । अतः एक माला के 108 मनके पृथ्वी के सापेक्ष ब्रह्माण्ड में बनने वाली 108 स्थितियों का प्रतिनिधित्व करते है ।
  3. आधुनिक विज्ञान को जिन अन्तरिक्षीय गणनाओं के लिए करोड़ो रूपये के उपकरण उपयोग करने पड़े, वह दुरियाँ हमारे ऋषि मुनि एक माला के मनको से गुणा करके प्राप्त कर लेते है । सोचो ! कितनी विचित्र बात है । यह मात्र एक संयोग नहीं, बल्कि इसके पीछे एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक सोच रही है । विश्वास नहीं होता तो खुद ही करके देख लो ।

आधुनिक विज्ञान के अनुसार –
पृथ्वी से सूर्य की दुरी = 149,600,000 किमी
पृथ्वी से चन्द्रमा की दुरी = 384,400 किमी
सूर्य का व्यास = 1,391,400 किमी
चन्द्रमा का व्यास = 3,474 किमी

Mala me 108 dane kyo

अब यदि हम सूर्य के व्यास को 108 से गुणा करें तो हमें प्राप्त होता है –
सूर्य का व्यास x 108 ≈ पृथ्वी से सूर्य की दुरी।
1,391,400 किमी x 108 = 150,271,200 किमी ≈ 149,600,000 किमी

इसी प्रकार यदि हम चन्द्रमा के व्यास को 108 से गुणा करें तो हमें प्राप्त होता है –
चन्द्रमा का व्यास x 108 ≈ पृथ्वी से चन्द्रमा की दुरी।
3,474 किमी x 108 = 37,5192 किमी ≈ 384,400 किमी

इसका सीधा सा अर्थ यह है कि पृथ्वी और सूर्य के बीच में 108 सूर्य समां सकते है और इसी तरह पृथ्वी और चंद्रमा के बीच में 108 चंद्रमा समां सकते है ।

  1. माला में सुमेरु जो माला के आदि और अंत का निर्धारण करता है तथा जिसका कोई उलंघन नहीं कर सकता, वह विशुद्ध ब्रह्म का प्रतिनिधित्व करता है । जो सृष्टि के आदि और अंत का कारण है, तथा जिसके नियमों का कोई उलंघन नहीं कर सकता ।

इस तरह एक माला और उसके 108 मनके इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और उसके रचनाकार ब्रह्म के रहस्य को अपने में छुपाये हुए है । हमने तो केवल कुछ गिने – चुने तथ्य और सत्य आपके सामने प्रस्तुत किये है । बाकि और कितने रहस्य छुपे है, माला के इन 108 मनको में, यह शोध का विषय है ।

सन्दर्भ – अखण्डज्योति पत्रिका

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