प्रेम की कीमत क्या है | एक प्रेम कहानी

एक गाँव में एक विद्वान ब्राह्मण रहता था । ब्राह्मण की धर्म पत्नी तो कुछ साल पहले एक बीमारी की चपेट में आकर परलोक सिधार गई । लेकिन ब्राह्मण की एक सुन्दर और सुशील बेटी थी, जिसका नाम चंद्रप्रभा था । ब्राह्मण अपनी बेटी से बहुत प्रेम करता था और वह उसके लिए एक योग्य वर की तलाश में था ।
ब्राह्मण प्रतिदिन प्रातःकाल संध्या वंदन करके आसपास के गाँवो में भिक्षा के लिए जाता था । इस दौरान चंद्रप्रभा घर का कामकाज निपटा के पानी लेने जाती थी । तत्पश्चात भोजन बनाती थी । भिक्षा से आने के बाद ब्राह्मण भोजन करके शास्त्रों का अध्ययन करता था ।
 
हमेशा की तरह एकदिन चंद्रप्रभा पानी लेने नदी किनारे गई हुई थी, तभी उसकी निगाहे दुसरे किनारे पर खड़े एक युवक से लड़ गई । पहली ही नजर में चंद्रप्रभा ने उसका मन मोह लिया । अब प्रतिदिन वह युवक वहाँ आकर चंद्रप्रभा को निहारने लगा । चंद्रप्रभा उसकी मनोदशा जान चुकी थी । अतः वह भी उसे निहारने लगी ।
 
प्रेम दोनों ओर से था किन्तु मौन था । फासला केवल नदी के दो किनारों का था । अक्सर प्रेम में ऐसा होता है । जिसे हम चाहते है वो हमारे पास होता है, हमारे साथ होता है लेकिन फिर भी हम उसके सामने अपना प्रेम व्यक्त नहीं कर पाते । शायद ! दोनों ही ओर यह उधेड़बुन चल रही होती है कि “कहीं मैं ऐसा कुछ न कह दूँ कि वो नाराज हो जाये ।”
 
यहाँ भी शायद कुछ ऐसा ही था । भय और संकोच, ये दो ही है, जो इन्सान को मौन रहने पर मजबूर कर सके । अब यहाँ भय था या संकोच, यह तो कहानी पढ़कर आप ही बताइयेगा ।
 
संयोग से एकदिन इसी तरह एक दुसरे को निहारने में चंद्रप्रभा नदी में फिसल गई । उसके नदी में गिरते ही वह युवक भी छलांग लगाके कूद पड़ा और उसे पकड़कर किनारे तक लाया और बोला – “ ध्यान से पानी भरा कीजिये ! अगर डूब गये होते तो ?”
 
मुस्कुराते हुए चंद्रप्रभा बोली – “ डूबती कैसे ? आप जो थे ।” वही से दोनों के प्रेम का मौन भंग हो गया । प्रेम तो था किन्तु चंद्रप्रभा ने मित्रता रखना ही उचित समझा । वह युवक प्रतिदिन मिलने आता, कुछ समय बातचीत करता और चला जाता था । चंद्रप्रभा भी अकेली थी, अतः उसे भी अपने दुःख – सुख साझा करने के लिए एक मित्र मिल गया ।
 
एकदिन उस युवक ने चंद्रप्रभा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा ।
 
चंद्रप्रभा ने कहा – “ मेरा विवाह मेरे पिता के अधीन है । अतः उनसे बात करो ।” तो वह युवक दुसरे दिन आने की कहकर चला गया ।
 
दुसरे दिन वह चंद्रप्रभा के घर पहुँचा । जलपान करके उसने ब्राह्मण के आगे अपना मनोरथ रखा । ब्राह्मण विद्वान था । ब्राह्मण ने कहा कि “ क्या तुम मेरी बेटी को जानते हो ?” उसने हाँ में उत्तर दिया । ब्राह्मण ने दूसरा प्रश्न किया कि “क्या तुम मेरी बेटी से प्रेम करते हो ?” उसने इसका उत्तर भी हाँ में ही दिया ।
 
अब ब्राह्मण बोला – “यदि तुम मेरी बेटी से प्रेम करते हो तो प्रेम की कीमत चुकाओ ?” यह सुनकर युवक बोला – “ आप जो चाहे मांग लो, मैं देने के लिए तैयार हूँ ।”
 
ब्राह्मण बोला – “ प्रेम करते हो तो प्रेम की कीमत भी तुम्हें पता होना चाहिए ।” यह सुनकर वह युवक अवाक् रह गया । वह सोचने लगा कि प्रेम की कीमत क्या हो सकती है ?
 
तभी ब्राह्मण हँसते हुए बोला – “ नहीं पता तो पहले प्रेम की कीमत पता करके आओ, फिर मेरी बेटी का हाथ मांगना ।” यह सुनकर वह युवक घर से निकल गया और जो कोई राह में मिलता, उससे प्रेम की कीमत पूछता ।
 
भटकते – भटकते उसे एक अजनबी मिला जिसने बताया कि “ यहाँ से थोड़ी ही दूर पीपल वाली पहाड़ी पर एक विद्वान महात्मा रहते है, वह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर अवश्य दे देंगे ।” वह दिनभर चलते – चलते पीपल वाली पहाड़ी पर पहुंचा ।
 
पीपल के पेड़ के नीचे महात्माजी ध्यान मुद्रा में बैठे थे । अतः वह उनके आंखे खोलने की प्रतीक्षा करने लगा । जैसे ही उन्होंने आंखे खोली । उस युवक ने जाकर उनको प्रणाम किया और बोला – “ स्वामीजी ! मुझे एक प्रश्न का उत्तर जानना है ?”
 
महात्माजी बोले – “ बोलो ! क्या प्रश्न है ?” तब युवक बोला – “ मेरा प्रश्न है कि प्रेम की कीमत क्या है ?”
महात्माजी हँसे और बोले – “ पगले ! ये प्रश्न तो तू खुद से पूछ, जो तेरी कीमत है, वही तेरे प्रेम की कीमत है ।”
 
उस युवक को बात समझ नहीं आई अतः बोला – “ महात्माजी ! थोड़ा सरल शब्दों में समझाइए ।” तब महात्माजी बोले – “तू अपने शरीर से प्रेम करता है कि नहीं ?” युवक बोला – “ हाँ ! करता हूँ ।”
 
तब महात्माजी बोले – “ तो अपने शरीर की कीमत बता ?” तब युवक बोला – “ महात्माजी ! कैसी बात करते हो ?, इस शरीर के बिना मेरा अस्तित्व ही क्या है ?, मेरे लिए यह अमूल्य है, मैं इसे नहीं बेच सकता ।”
 
तब हँसते हुए महात्माजी बोले – “ यही तेरे प्रश्न का उत्तर है । प्रेम भी अमूल्य है । प्रेम की कोई कीमत नहीं होती । प्रेम का कोई सौदा नहीं किया जा सकता । जहाँ प्रेम होता है, वहाँ कुबेरों के खजाने भी खाली पड़ जाते है । तो फिर तू क्या चीज़ है जो प्रेम की कीमत चुकाएगा ? जिस प्रेम की कीमत होती है, वो प्रेम नहीं सौदा है ।”
 
युवक को उसका जवाब मिल चूका था । ख़ुशी – ख़ुशी वह चंद्रप्रभा के घर गया और ब्राह्मण को प्रेम की कीमत बताई और प्रेम की कीमत चुकाने के अपने घमण्ड के लिए क्षमा मांगी और बोला – “हे ब्रह्मन ! प्रेम तो अमूल्य है किन्तु आपकी बेटी के प्रेम में मैं स्वयं को चुकाने के लिए तैयार हूँ ।”
 
ब्राह्मण को युवक के सच्चे प्रेम पर विश्वास हो गया । उसने अपनी बेटी और उस युवक दोनों की शादी करवा दी ।
 
शिक्षा – “प्रेम अमूल्य है” इतना ही काफी है ।

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