नाम जप की महिमा कहानी

श्रद्धा नहीं तो नाम जप बेकार | नाम जप की महिमा

एक गाँव में एक साधू महाराज रहते थे । साधू महाराज जहाँ भी जाते, नाम जप पर उपदेश देते थे । साधू महाराज की नाम जप पर अगाध श्रृद्धा को देखकर कई लोगों ने उनसें राम नाम की दीक्षा ली । कुछ लोग तो उनके सानिध्य में रहकर ईश्वर का अनुग्रह पाने के लिए उनके शिष्य तक बन गये ।

एक बार साधू महाराज शिष्यों को नाम की महिमा सुना रहे थे । तब उन्होंने कहा कि ” अगर श्रृद्धा हो तो राम का नाम जपने मात्र से मनुष्य सभी संकट से पार हो जाता है ।”

यह सुनकर साधू महाराज का एक शिष्य ख़ुशी से उछल पड़ा । उसे तो मानो हर संकट से उबरने का रामबाण मिल गया । वह प्रतिदिन भिक्षा के लिए नदी पार करके दुसरे गाँव जाता था । इसके लिए उसे नाविक को चार आने देने पड़ते थे ।

एक दिन की बात है । साधू महाराज का वह शिष्य भिक्षा के लिए जा रहा था । उस दिन दूर कहीं बारिश हुई थी, जिससे नदी में बाढ़ आई हुई थी । नाविक ने ले जाने से मना कर दिया । तभी शिष्य को गुरूजी का वह उपदेश याद आया –  ” राम का नाम जपने मात्र से मनुष्य सभी संकट से पार हो जाता है ।” शिष्य ने सोचा – “ अगर राम नाम से सभी संकटों से पार हुआ जा सकता है तो नदी पार करना कोनसी बड़ी बात है ।” लेकिन फिर भी उसे संदेह हुआ । कहीं डूब गया तो ! उसने पहले गुरूजी से पूछना उचित समझा ।

वह वापस गुरूजी के पास गया बोला – “ गुरूजी ! आज तो नदी में बाढ़ आई हुई है और नाविक ने पार कराने से मना कर दिया । अब क्या करूँ ?”

गुरूजी बोले – “ कुछ नहीं ! आज जल पर निर्वाह कर लेंगे ।” लेकिन जल पर निर्वाह करना शिष्य को मंजूर नहीं था । उसने गुरूजी से फिर पूछा – “ गुरूजी ! आप कहते है, ‘राम नाम जपने मात्र से सभी संकटों से पार हुआ जा सकता है’ क्या राम नाम से नदी भी पार हो सकती है ?”

गुरूजी बोले – “ अवश्य ! श्रृद्धापूर्वक लिया गया राम नाम सभी संकटों से पार कर देता है । इसमें कोई संदेह नहीं कि नदी पार हो सकती है ।”

फिर क्या था । गुरूजी की बात सुनकर शिष्य फिर से नदी की ओर चल दिया । शिष्य को पक्का विश्वास तो नहीं था कि वह पार हो जायेगा लेकिन फिर भी राम नाम की परीक्षा करने के लिए वह नदी में उतरा । उसने एक बार राम बोला और एक कदम आगे बढ़ा । तो कुछ नहीं हुआ ।

दो बार राम – राम कहा और आगे बढ़ा । फिर भी उसे कोई प्रभाव नहीं दिखा । अब राम – राम बोलते – बोलते वह आगे बढ़ने लगा । पानी उसके गर्दन तक आ गया । अब उसने सोचा कि राम नाम बेकार है – ” ये केवल लोगों को उपदेश देने के लिए है ।” गुरूजी तो झूठ बोलते है । इतने में एक बड़ी लहर आई और उसे बहा ले गई ।

शिष्य बिचारा गोते खाते – खाते किसी तरह किनारे लगा । उसे गुरूजी पर बड़ा गुस्सा आ रहा था । उसने जाकर सारी आपबीती गुरूजी को सुनाई और गालियाँ देने लगा ।

शिष्य बोला – “ अरे डोंगी पाखंडी गुरु ! कोई मरे या जिये तुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । कुछ भी अनाप – शनाप उपदेश बकता रहता है । आज तेरे उपदेश के चक्कर में मैं मरते – मरते बचा । ये ले तेरी कंठी माला, आज मैं तुझे पूरी दुनिया के सामने नंगा करूँगा ।” गुरूजी शांत बैठे मुस्कुरा रहे थे ।

यह देखकर शिष्य गुस्से से लाल हो गया । “ मैं जा रहा हूँ गाँव वालों को तेरी असलियत बताने ।” यह कहते हुए शिष्य फिर से नदी की ओर चल दिया । पीछे – पीछे गुरूजी भी चल दिए । जब नदी किनारे पहुँचे तो नदी उफ़ान पर थी । शिष्य नदी के किनारे पर बैठकर नदी के शांत होने की प्रतीक्षा करने लगा ।

गुरूजी किनारे पर रुके बिना नदी में उतर गये । जैसे ही साधू महाराज नदी में उतरे नदी ने रास्ता दे दिया । यह देखकर शिष्य दंग रह गया । उसे अपनी भूल समझ आ गई । वह पश्चाताप की आग में जलता हुआ नदी में कूद पड़ा । उस समय उसे जीवन की कोई परवाह नहीं थी । ना ही अपनी कोई सुध ही थी । वह दौड़ता हुआ नदी पार कर गया और गुरुदेव के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा । साधू महाराज ने उसे उठाया और गले लगा लिया । जब उसे सुध आई तो उसने पीछे मुड़कर देखा । नदी ज्यो की त्यों बह रही थी ।

उसने आश्चर्यपूर्वक गुरूजी से पूछा – “ गुरूजी ! ये क्या रहस्य है ? जब मैंने राम नाम जपा था तब नदी पार नहीं कर पाया और अब जबकि मैंने कुछ नहीं जपा फिर भी नदी पार हो गई । ऐसा क्यों ?”

गुरूजी बोले – “ वत्स ! सब श्रृद्धा का चमत्कार है । नाम तो श्रृद्धा को साधने का जरिया मात्र है । तुम राम कहो या कृष्ण, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । अगर श्रृद्धा है तो तुम्हारा कोई भी नाम या विचार तुम्हें संकटों से पार कर सकता है और यदि श्रृद्धा नहीं है तो सारे नाम बेकार है ।”

गुरूजी आगे बोले – “ जब तुम पहली बार नदी पार कर रहे थे । उस समय तुम्हें नाम में श्रृद्धा नहीं, संदेह था । लेकिन अब जब तुमने उसी नाम से मुझे पार होते देखा तो तुम्हे अपनी भूल का अहसास हो गया और तुमने अपने जीवन की परवाह किये बिना समर्पण कर दिया । यही श्रृद्धा है ।”

“ जब श्रेष्ठता से प्रेम, ईश्वर से प्रेम हमारे अंतःकरण में उमड़ पड़े तो समझो श्रृद्धा का प्राकट्य हो चूका है । अब आपका इष्ट नाम सार्थक है । श्रृद्धा और समर्पण के साथ ही नाम की सार्थकता है ।

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