कुण्डलिनी जागरण का अधिकारी – कहानी

कौन है जो कुण्डलिनी महाशक्ति के बारे में नहीं जानता ? शायद ही कोई हो जो कुण्डलिनी के बारे में नहीं जानता हो और कुण्डलिनी जागरण की अभिलाषा नहीं रखता हो ! आज के समय में हर कोई कुण्डलिनी के सामान्य परिचय से परिचित है । किन्तु जब बात पात्रता और अधिकार की जाती है तो अधिकांश को निराश होना पड़ता है । इसी को समझाते हुए यह एक छोटी सी कहानी आपके सामने प्रस्तुत है –
 
एक बार एक गाँव में सुधाकर, सुधीर और सुधांशु नाम के तीन घनिष्ट मित्र रहते थे । उनका खेल – कूद और पढ़ना – लिखना हमेशा साथ – साथ ही होता था । दिन पर दिन बीतते गये और एक समय ऐसा आया जब वह किशोर से युवा हो गये । सुधाकर ब्राह्मण था अतः उसने अपना पुरोहिताई का कामकाज संभाल लिया । दुसरे मित्र सुधीर के पुरखे सालों से व्यापार करते आ रहे थे, अतः उसने अपने पुरखों का व्यापार का कामकाज संभाल लिया । तीसरा मित्र सुधांशु बिचारा प्रारंभ से ही गरीब था किन्तु अपनी बुद्धिमत्ता और परिश्रम से उसने अपने पुरखों के खेती का काम ही व्यवस्थित रूप से करना शुरू कर दिया । जिससे कुछ ही दिनों में उसकी स्थिति काफी हद तक सुधर गई । किन्तु दरियादिली के रहते वह धनवान नहीं बन सका । जब भी कोई जरूरतमंद मिल जाता उसकी आवश्यकता पूरी किये बिना उसे चैन नहीं होता । संपत्ति के मामले में भारी भिन्नता होने के बावजूद भी तीनों मित्रों में की मित्रता बरक़रार थी ।
 
बचपन में तीनों मित्रों की चर्चा का विषय खेल – कूद और पढाई – लिखाई हुआ करती थी । किन्तु अब यौवन में उनकी चर्चा का विषय बदलकर देश – धर्म, समाज, सेवा, मान – सम्मान और धनार्जन हुआ करते थे । सुधाकर और सुधीर को धन का बहुत अधिक लोभ था । वह जब भी मिलते अधिक से अधिक धन कमाने की योजनायें बनाते थे ।
 
एक दिन सुधीर ने सुधाकर से कहा – “ मित्र ! तुम तो दिन – रात प्राचीन शास्त्रों को टटोलते रहते हो । सुना है कि प्राचीन राजाओं के पास योग और तंत्र की सिद्धि होने से वह बहुत अधिक शक्तिशाली और धनवान होते थे । यदि ऐसा कोई उपाय हमें मिल जाये तो कितना अच्छा हो !
 
सुधाकर बोला – “ मित्र ! यह संभव तो है किन्तु इसके विषय में मुझे थोड़ी खोजबीन करनी पड़ेगी ।
अगले सप्ताह तीनों मित्र हमेशा की तरह नियत स्थान पर मिले । आज सुधाकर का चेहरा ख़ुशी से चमक रहा था । सुधीर ने उत्सुकतावश वश पूछा – “ क्या बात है मित्र ! आज बड़े खुश नजर आ रहे हो ! क्या तुम्हारा विवाह तय हो गया है ?”
 
सुधाकर बोला – “ नहीं मित्र ! मुझे विश्व विख्यात बनने का ऐसा उपाय मिला है जिसके बारें में जानकर तुम लोग ख़ुशी से फुले नहीं समाओगे ।”
 
सुधांशु – “ तो बताइए ब्राह्मण महोदय ! ऐसा कौनसा उपाय है ?”
 
सुधाकर – “ वह उपाय है “ कुण्डलिनी जागरण ”
 
सुधीर – “ यह क्या है ? ”
 
सुधाकर ने अपने दोनों मित्रों को कुण्डलिनी की सम्पूर्ण महिमा सुनायी और अंत में बोला – “ किन्तु इसका जागरण किसी योग्य पथप्रदर्शक की देखरेख में करना ही उपयुक्त होगा ।”
 
सुधीर – “ योग्य पथप्रदर्शक कौन हो सकता है ? ”
 
सुधाकर – “ निश्चय ही कोई तपस्वी, योगी गुरु ही हो सकता है ! हमारे गुरुकुल में एक आचार्य है, वह हमें यह सब सिखा सकते है ”
 
ठीक है तो फिर अलगे सप्ताह चलते है –  सुधीर और सुधांशु ने एक साथ कहा !
 
अगले सप्ताह सुबह – सुबह तीनों मित्र आचार्य के पास गये । आचार्य संध्या – उपासना से निवृत होकर आ ही रहे थे कि रास्ते में यह तीनों मित्र मिल गये ।
 
तीनों मित्र एक साथ बोले – “ आचार्य ! हम आपके शिष्य बनना चाहते है ! ”
 
आचार्य ने रुककर एकटक तीनों को देखा और बोले – “ किन्तु इस उम्र में तुम शिष्यत्व ग्रहण क्यों करना चाहते हो ?”
 
सुधाकर बोला – “ आचार्य ! हम कुण्डलिनी जागरण करके अपनी अतीन्द्रिय शक्तियों को बढ़ाना चाहते है ।”
 
आचार्य – “ कुण्डलिनी जागरण की शिक्षा केवल पात्र को दी जा सकती है, कुपात्र को नहीं । इसके लिए तुम्हे अपनी पात्रता सिद्ध करनी होगी ।”
 
तीनों मित्र एक साथ – “ आप जैसी परीक्षा लेना चाहे, हम तैयार है ।”
 
आचार्य – “ ठीक है ! तो जाओ अलगे सप्ताह आना ।” तीनों मित्र आचार्य से आश्वासन लेकर अपने – अपने घर चल दिए ।
 
दुसरे दिन जब सुबह – सुबह सुधाकर घर से बाहर निकला तो देखा कि कोई फ़क़ीर फटेहाल उसके घर के सामने बैठा ठण्ड से ठिठुर रहा था । सुधाकर ने अपना वस्त्र उसके ऊपर डाल दिया और संध्यावंदन के लिए चल दिया । जब वह संध्यावंदन करके लौटा तो देखा कि वह फ़क़ीर अब भी उसी जगह बैठा है । सुधाकर को गुस्सा आया और उसने उसे डांटकर भगा दिया ।
 
इसके दुसरे दिन यही घटना सुधीर के साथ घटी । जब सुधीर ने देखा कि फ़क़ीर एक पेड़ के नीचे बैठा पेड़ के पत्ते खा रहा है । सुधीर ने सोचा इसको दान देना चाहिए । सुधीर उसके निकट गया और एक चांदी का सिक्का थमाते हुए बोला – “ जिस भी घर भिक्षा मांगने जाये, बोलना कि सुधीर सेठ ने दान में मुझे चांदी का सिक्का दिया है ।” फ़क़ीर धीरे से बोल – “ जी हुजुर !
 
थोड़ी ही देर में गाँव के कुछ लोग इकट्ठे हो गये और फ़क़ीर को धर्म विरोधी बताने लगे । कुछ ही देर में लोगों ने पत्थर बरसाना शुरू कर दिया । फ़क़ीर भागा और गाँव वाले उसके पीछे – पीछे भागे । संयोग से सामने से गरीबो का मसीहा सुधांशु आ रहा था । उसने फ़क़ीर का बीच बचाव करते हुए गाँव वालों को समझाया । सुधांशु के ज्ञान और अनुभव का सभी सम्मान करते थे अतः उन्होंने फ़क़ीर को छोड़ दिया ।
सुधांशु उस अजनबी फ़क़ीर को अपने घर ले आया और भोजन कराया । सुधांशु को फ़क़ीर को भोजन करवाकर बहुत आनंद आ रहा था और फ़क़ीर को भी सुधांशु से दूसरी बार मिलकर बड़ा आनंद आ रहा था । तीन दिन तक फ़क़ीर सुधांशु के घर रहा और दोनों ने खूब ज्ञान चर्चा की । चौथे दिन फ़क़ीर अपने गंतव्य को चला गया ।
 
इसके दुसरे दिन ही तीनों मित्र मिले और आचार्य के आश्रम की ओर चल दिए । आश्रम पहुंचकर सुधाकर बोला – “ आचार्य ! आज हम आपके कहे अनुसार अपनी पात्रता की परीक्षा देने के लिए प्रस्तुत है ।”
 
आचार्य बोले – “ वत्स सुधाकर ! तुम तीनों की पात्रता की परीक्षा मैं ले चूका हूँ और तुममें से केवल सुधांशु ही कुण्डलिनी जागरण का अधिकारी हो सकता है । इसलिए तुम दोनों जाकर अपना सांसारिक कर्म करों । मैं केवल सुधांशु को ही कुण्डलिनी की शिक्षा दूंगा ।” यह सुनकर सुधाकर और सुधीर दोनों सुधांशु को आश्चर्य से देखने लगे ।
 
सुधाकर और सुधीर दोनों एक स्वर में बोले – “ आचार्य ! सुधांशु में ऐसा क्या है जो हममें नहीं है ?”
 
आचार्य बोले – “ करुणा ! जिसके ह्रदय में करुणा नहीं, वह कुण्डलिनी क्या किसी भी पारलौकिक शक्ति का अधिकारी नहीं हो सकता । कुण्डलिनी का जागरण अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए नहीं परमार्थ के उद्देश्य को पूरा करने के लिए होना चाहिए । जब तुम्हारा उद्देश्य ही खोखला है तो फिर उस पर कुण्डलिनी महाशक्ति की नींव खड़ी कैसे की जा सकती है ।”
 
सुधाकर और सुधीर को अपनी गलती का अहसास हो गया । उन्होंने अपने सांसारिक कार्यों में परमार्थ को प्रधानता देने का निश्चय किया और चल दिए । सुधांशु आचार्य के आश्रम ने रहकर योगाभ्यास करने लगा ।

दोस्तों ! यदि आप कुण्डलिनी जैसी महान शक्ति का अपने जीवन में अवतरण चाहते है तो फिर आपकी सोच भी महान होना चाहिए । छोटी सोच के लोग बड़ी शक्ति को नहीं संभाल सकते । इस सन्दर्भ में आपकी क्या राय है ? हम आपकी राय जानना चाहेंगे !

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