धोबी का कुत्ता ना घर का रहा ना घाट का – एक शिक्षाप्रद कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक धोबी रहता था । आज की तरह ही उस समय भी अमीर लोगों के घरों में कपड़े नहीं धोये जाते थे । धोबी रोज सुबह – शाम धुले हुए कपड़े इकट्ठे करके गाँव में फेरी लगाता और धुले हुए कपड़े उनके मालिको को देकर मेले कपड़े इकट्ठे कर लाता था । सुबह जो मेले कपड़ो की गठरी लाता शाम धोकर शाम को लौटा देता और शाम को जो मेले कपड़ो की गठरी लाता उसे सुबह तक धोकर लौटा देता था । यही क्रम धोबी का प्रतिदिन चलता रहता था ।

दिन के समय में तो घाट पर कई लोग नहाने आते थे, इसलिए धोबी आराम से कपड़े धोता और सुखाता था । लेकिन शाम के समय कपड़े धोने में अक्सर उसे अँधेरा हो जाया करता था । घाट गाँव से थोड़ा दूर था और रास्ते में जंगल भी पड़ता था । धोबी बिचारा डरपोक किस्म का था इसलिए हर समय उसके मन में अँधेरे में जंगली जानवरों से भीड़ जाने का डर बना रहता था । किसी तरह जय हनुमान – जय हनुमान का जाप करते हुए वह जंगल पार करता था । जंगल का रास्ता भी बड़ा सुनसान था । जानवरों की अजीबोगरीब आवाजे सुनकर धोबी सरपट दोड़ता हुआ जाता था ।

एक दिन संयोग से उसे घाट पर एक कुत्ता दिखाई दिया । उसने सोचा कि “ अगर मैं इस कुत्ते को पाल लूँ तो मेरा रोज़ का अकेलापन दूर हो सकता है ।” “ डूबते को तिनके का सहारा” ऐसा सोच वह उस कुत्ते को अपने घर ले गया । उसने कुत्ते की खूब खातिरदारी करी । कुत्ता भी मस्त हो गया ।

कुत्ता तो आदत से ही वफादार होता है । अब कुत्ता धोबी के साथ रोज घाट पर जाने लगा । घाट से सीधा घर लाकर धोबी उसे खाना देता था और गाँव में फेरी लगाने चला जाता था । अब धोबी को ना अँधेरे से डर लगता था ना किसी जंगली जानवर से । क्योंकि उसके साथ उसका वफादार कुत्ता जो था ।

शुरुआत में धोबी ने कुत्ते को भरपेट खाना दिया । किन्तु जैसे – जैसे दिन पर दिन बीतते गये अपने कंजूस स्वभाव के कारण धोबी ने कुत्ते का खाना कम करना शुरू कर दिया । अब बिचारा कुत्ता भूखा रहने लगा । एक दिन कुत्ते ने सोचा कि “ यह धोबी तो महाकंजूस है, कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा, वरना ऐसे तो मैं मर जाऊंगा ।”

कुत्ते भी बड़े चालाक होते है । उसने एक योजना बनाई । सुबह – सुबह घाट से आने के बाद जब धोबी कुत्ते को खाना देकर फेरी लगाने चला जाता तो कुत्ता उस खाने को दोड़कर घाट पर जाकर छुपाकर आ जाता और धोबन के घर से बाहर जाने का इंतजार करता । संयोग से धोबन भी उस समय पानी भरने जाती थी । मौके के लाभ उठाकर कुत्ता घर में घुस जाता और रोटियां चुराकर घाट की और भाग जाता था । कुछ खाकर कुछ घाट पर ही छुपा देता था और घर आकर  अपने स्थान पर बैठ जाता था । यही क्रम कई दिनों तक चलता रहा ।

एक दिन एक भटकते हुए कुत्ते ने धोबी के कुत्ते को देखा । धोबी का कुत्ता अच्छा – खासा मोटा – तगड़ा हो गया था । वह कुत्ता सोचने लगा कि आखिर इसे इतना खाना कहाँ से मिलता है । उस अजनबी कुत्ते ने धोबी के कुत्ते की रखवाली करना शुरू कर दिया ।

उसने देखा “ हमेशा की तरह धोबी और उसका कुत्ता दोनों घाट से घर आये और धोबी ने कुत्ते को खाना दिया । लेकिन धोबी का कुत्ता खाना लेकर घाट की ओर भागा ।” वह अजनबी कुत्ता भी उसके पीछे – पीछे दौड़ने लगा । उसने दूर से देखा कि धोबी के कुत्ते ने खाना घाट पर एक जगह छुपा दिया है । और वह घर की तरफ रवाना हुआ । अजनबी कुत्ता भी उसके पीछे – पीछे घर की तरफ गया । घर जाकर उसने देखा कि धोबी का कुत्ता धोबन के निकलते ही घर में घुस गया और बहुत सारा खाना अपने मुंह में दबाकर घाट की तरफ भागा । अजनबी कुत्ता भी उसके पीछे – पीछे भागा । धोबी के कुत्ते ने खाना छुपाया और घर जाकर अपनी जगह बैठ गया ।

अजनबी कुत्ता इस बार धोबी के कुत्ते के पीछे घर नहीं गया । वह सूंघता हुआ धोबी के कुत्ते द्वारा छुपाये खाने के पास पहुँच कर सारा खाना चट कर गया । अब जब धोबी का कुत्ता धोबी के साथ घाट पर आया तो उसे खाना नहीं मिला । बिचारा वह पूरा दिन भूख से तड़पता रहा । इसलिए कहा जाता है – “ धोबी का कुत्ता, ना घर का रहा ना घाट का ”

दोस्तों ! इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कभी हमें कभी भी ना तो धोबी की तरह कंजूस होना चाहिए ना ही उसके कुत्ते की तरह लालची । क्योंकि जो यदि धोबी कंजूस नही होता तो उसका कुत्ता भी लालची नहीं होता ।

कोई आपके साथ तब तक ईमानदार है जब तक कि आप उसके साथ ईमानदार है ।

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