कथनी और करनी में अंतर की सजा

प्राचीन समय की बात है, महामुनि कोतस्य कालिन्दी नदी के तट पर प्रवचन किया करते थे । नित्य उनके प्रवचन से लाभान्वित होने के लिए आस – पास के नगरवासी प्रतिदिन एकत्र होते है । नगरवासी ही नहीं बल्कि जंगल के जानवर व पशु – पक्षी भी महामुनि का प्रवचन सुनने आते थे ।
 
एक दिन प्रवचन का विषय था – लोभ से विनाश । सर्दी का मौसम और प्रातःकाल का समय अतः संयोगवश उस दिन एक मगरमच्छ नदी के किनारे धूप ले रहा था । उसने भी महामुनि का प्रवचन सुना ।
 
प्रवचन के पश्चात महामुनि बड़ा गर्व महसूस कर रहे थे । उन्हें लग रहा था कि लोभ उन्हें छू भी नही सकता । किनारे पर बैठे मगरमच्छ को महामुनि की यह बात खटकी । वह समझ गया कि महामुनि अपनी वाचालता की आड़ में अपने घमण्ड की तुष्टि कर रहे है । उसने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली ।
 
महामुनि वही पास ही एक पेड़ की छाँव में आसन लगाकर ध्यान मुद्रा में बैठे थे । मगरमच्छ पानी में गया और कुछ मोती लाकर उनके आसन से किनारे तक बिखेर दिए । कुछ समय बाद जब महामुनि ने आंखे खोली तो मोतियों को देखकर अचंभित हो गये । वह झट से उठ खड़े हुए और मोती चुनते – चुनते किनारे तक पहुँच गये तभी मगरमच्छ बाहर निकलते हुए साष्टांग प्रणाम करने लगा और बोला – “ महामुनि ! आप धन्य हो, नित्य आपका प्रवचन सुनकर मैं कृत्य – कृत्य हो जाता हूँ । जलचर होने के कारण आपको प्रणाम करने के लिए आपके आसन तक नहीं पहुँच सकता था इसलिए मोती बिखेर कर आपको यहाँ लाने का कष्ट दिया । इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ।”
 
मगरमच्छ की श्रृद्धा भक्ति देखकर महामुनि बहुत प्रसन्न हुए । वह उसे आशीर्वाद देने लगे तभी मगरमच्छ बोला – “ प्रभु ! आप तो बहुत दयालु है, आप कृपा करें तो मेरी मनोकामना पूर्ण हो सकती है ।”
महामुनि बोले – “ बोलो क्या मनोकामना है तुम्हारी ?”
 
मगरमच्छ बोला – “ प्रभु ! अरसों से त्रिवेणी स्नान की इच्छा थी किन्तु मार्ग पता नहीं होने की वजह से इसी कालिन्दी में भटकता रहता हूँ, यदि आपकी कृपा हो और आप मेरी पीठ पर सवार होकर मेरा मार्गदर्शन करें सहस्त्रों मोतियों का हार आपको गुरु दक्षिणा स्वरूप भेट करके धन्य हो जाऊंगा ।”
 
मगरमच्छ ने लोभ का ऐसा आक्रमण किया कि महामुनि का सारा ज्ञान छु – मंतर हो गया । इतना बड़ा लाभ पाने की ख़ुशी में वह मन ही मन हवा में उड़ने लगे । उन्होंने झट से अपना आसन मगरमच्छ की पीठ पर बिछाया और हो गये सवार ।
 
बीच भंवर में ले जाकर मगरमच्छ बोला – “ महामुनि ! आज प्रातः ही तो आपने लोभ से विनाश का प्रवचन दिया था ! इतनी जल्दी भूल गये ।
 
महामुनि बोले – “ क्या मतलब ?”
 
मगरमच्छ – “ मतलब सीधा सा है कि अगर आपने अपनी कथनी और करनी में भेद नही रखा होता तो आप मेरे जैसे हिंसक जलचर के चंगुल में नही फसते । किनारे पर मिले मोतियों में संतोष न करके आपने अपने विनाश को आमंत्रित किया है ।” इतना कहकर मगरमच्छ ने गुलाटी मारी और महामुनि लुड़क गये । मगरमच्छ ने महामुनि को अपना आहार बना लिया ।

शिक्षा – दोस्तों ! जीवन में मनुष्य को कई प्रकार के प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है । लेकिन उन प्रलोभनों से बच वही सकता है, जो संयमी और सजग हो । एक मोटी बात जो मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ । वह यह है कि जीवन में जब भी बिना मेहनत के बहुत अधिक कुछ मिलने के आसार बने , तो हमेशा याद रखना ! वहाँ ९९ प्रतिशत धोखा होने की संभावना है ।

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