जीवन की महत्ता हिंदी कहानी

एक नगर में एक बड़ा ही चतुर और बुद्धिमान सेठ रहता था । अपनी चतुरता के रहते सेठ ने खूब धन – दौलत कमाई । घर में भी धन – धान्य की कोई कमी नहीं थी । तिजोरियाँ स्वर्ण मुद्राओं और आभूषणों से भरी पड़ी थी । सेठ के घर में केवल तीन सदस्य थे । एक सेठ, सेठानी और उनका प्राणों से प्यारा एक छोटा सा बच्चा । तीनों ही सुख और प्रसन्नता से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे ।
 
सेठ की अमीरी और चतुरता के चर्चे दूर – दराज के गाँवो तक प्रसिद्ध थे । जाहिर सी बात है । जब कोई आगे बढ़ने लगता है तो कुछ लोग, जो दूसरों की प्रसिद्धि से ईर्ष्या रखते है वो उसकी टांग खींचना शुरू कर देते है । ठीक यही सेठजी के साथ भी हुआ । सेठजी के आस – पड़ोस में भी सैकड़ो ऐसे लोग थे, जो उनसे जलन रखते थे ।
 
एक दिन की बात है । आधी रात का समय था, सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे कि अचानक सेठजी के घर में आग लग गई । जब तक सेठ और सेठानी जागते तब तक आग की लपटे पुरे घर में फ़ैल गई थी । जैसे ही सेठानी की आंखे खुली, आग की लपटे देखकर वह भौचक्की रह गई । खर्राटे भरते हुए सेठजी को उन्होंने तुरंत झकझोरते हुए उठाया । सेठजी उठे तो सीधे पागलों की तरह भागने लगे । पहले से यदि ऐसा कुछ होने की आशंका होती तो कोई बंदोबस्त भी करके रखा जाता लेकिन अब आग बुझाना उनके बस से बाहर था । इसलिए उन्होंने सारा कीमती सामान बाहर निकालना शुरू कर दिया । साथ ही साथ पड़ोसियों को भी अनवरत आवाज दी जा रही थी । आवाज सुनकर कुछ पड़ोसी जुट गये और सामान निकालने में मदद करने लगे ।
 
बहुत सारे लोग जाग गये तो सब दोड़ – दोड़कर अपने – अपने घर से पानी लाकर आग बुझाने लगे । आखिरकार आग काबू में आ ही गई । सबने दोड़ – दोड़कर बहुमूल्य सामान बाहर निकालना शुरू कर दिया । सारी बहुमूल्य वस्तुएं घर से बाहर निकालने के बाद सेठ और सेठानी ने चैन की साँस ली ।
अब सेठ और सेठानी देख रहे थे कि सारा कीमती सामान बचा लिया गया था । जो जला था वो उतना बहुमूल्य और कीमती नहीं था । सभी लोग सेठ और सेठानी को सांत्वना देकर जाने लगे । उन्होंने भी फिर व्यापार शुरू किया जा सकेगा ऐसा सोचकर चैन की साँस ली ।
 
तभी सेठानी को अपने इकलोते बच्चे का खयाल आया । सेठ और सेठानी दोनों बच्चे को अन्दर बाहर सभी जगह ढूंढ रहे थे । तभी सेठानी को याद आया कि बच्चा तो अन्दर ही पलंग पर सो रहा था । बेशकीमती सामान निकालने के चक्कर में वो बच्चे को तो भूल ही गये । जाकर देखा तो बच्चा पलंग के पूरी तरह जल चूका था । यह देखते ही सेठ और सेठानी दोनों जोर – जोर से रोने लगे । उनका रुदन सुनकर फिर से मोहल्ला जुट गया ।
 
लोगों ने देखा कि बच्चा पूरी तरह से जल चूका है अतः उन्होंने उसका अंतिम संस्कार करने की तैयारी शुरू कर दी । सेठ और सेठानी अब भी मरे हुए बच्चे को भी छोड़ नहीं रहे थे । लेकिन लोगों ने रोते – कलपते उनको पकड़ा और बच्चे का अंतिम संस्कार किया । सेठ और सेठानी अपने घर के जलने से उतने दुखी नहीं थे जितने की बच्चे की मौत के इस हादसे से दुखी हुए । उनका इकलोता बेटा, उनके बुढ़ापे का सहारा, आँखों का तारा उनसे छीन चूका था । इस बात को वह हजम नहीं कर पा रहे थे । इस दर्दनाक हादसे से वो पूरी तरह से हिल चुके थे ।
 
यह बात चारों ओर आग की तरफ फेल गई । सहानुभूति जताने जो कोई भी आता वो यही कहता कि धन – संपत्ति बचाने के चक्कर में आपने बच्चे की ओर कोई ध्यान ही दिया । यदि आपने पहले उसे बचाया होता तो शायद वो जिन्दा होता । जो कोई भी बात सुनता, सभी सेठ और सेठानी को दोषी बताते और वह दोषी थे भी ।
 
शिक्षा – प्रकारांतर से यह कहानी हमारे जीवन रूपी बच्चे पर ध्यान नहीं देने पर लिखी गई है । आज का इन्सान धन – संपत्ति जुटाने की भाग – दौड़ में इस कदर दौड़ रहा है कि उसे अपने अमूल्य जीवन की उपयोगिता की कोई परवाह ही नहीं । आरंभिक तौर पर तो यह सौदा मुनाफे का मालूम पड़ता है किन्तु आगे जाकर इसके कई दुष्परिणाम हमें भोगने पड़ते है । जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । केवल जीने का नाम जिन्दगी नहीं है बल्कि सुख, शांति और आनंद पूर्वक जीने का नाम जिंदगी है । जब तक हम जीवन की महत्ता को नहीं समझेंगे । जीवन सम्पदा की कदर नहीं करेंगे, शौक, संताप, परेशानी और हैरानी के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला ।

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