अंधविश्वास का जन्म कहानी

एक गाँव से थोड़ी ही दूर जंगल में एक गुरूजी और उनके शिष्य कुटिया बनाकर रहते थे । उस जंगल में चूहों का बड़ा भारी आतंक था । आये दिन चूहे रात्रिकालीन समय में गुरूजी की कुटिया पर आक्रमण करते और अनाज बिखेर देते थे । कुछ नहीं मिलता तो धार्मिक ग्रंथो को कुतर कर चले जाते थे । गुरूजी और उनके शिष्यगण चूहों के आतंक से बहुत परेशान थे । आखिर एक दिन गुरूजी ने सोचा कि ऐसे काम नहीं चलने वाला । इन चूहों का कुछ तो करना पड़ेगा ।
 
उन्होंने अपने एक शिष्य को बाजार भेजा और एक पालतू बिल्ली मंगवाई । अब बिल्ली का खौफ चूहों पर इस कदर छाया कि कुटिया में घुसना तो दूर, कुटिया के आस – पास तक नहीं भटकते । बिल्ली इतनी समझदार थी कि गुरूजी कि खाने के लिए दी गई सामग्री के अलावा दूसरी खाद्य सामग्री में मुंह नहीं मारती थी । बिल्ली दिनरात खुली घुमती थी । कभी यहाँ कूदती तो कभी वहाँ कूदती । वह अपनी ही मस्ती में मस्त रहती थी । चूहों से होने वाली परेशानी से छुटकारा पाकर गुरूजी ने भी चैन की साँस ली । गुरूजी को भी बिल्ली की शरारतों से बड़ा लगाव था और बिल्ली को भी गुरूजी से बड़ा प्रेम था ।
 
जब भी गुरूजी सुबह – सुबह ध्यान करने बैठते तो बिल्ली भी उनकी गोदी में आकर बैठ जाती थी । इससे गुरूजी का ध्यान टूट जाता था । ध्यान में होने वाली इस बाधा से निजात पाने के लिए गुरूजी ने पास के एक पेड़ से बिल्ली को बांधना शुरू कर दिया । इस तरह गुरूजी को बिल्ली से होने वाली परेशानी से छुटकारा मिल गया ।
 
कुछ दिनों बाद एक दिन गुरूजी स्वर्ग सिधार गये और उनका काम – काज उनके एक वरिष्ठ शिष्य ने संभाल लिया । गुरूजी को न देखकर बिल्ली व्याकुल रहने लगी । उसने भी खाना – पानी छोड़ दिया और कुछ ही दिनों में उसने भी प्राण त्याग दिए ।
 
अब नए गुरूजी भी पुराने गुरूजी की तरह सुबह – सुबह ध्यान करने बैठते लेकिन अभ्यास नहीं होने की वजह से कुछ ही समय में ध्यान टूट जाया करता था । ज्यादा देर टिक ही नहीं पाते थे । नए गुरूजी ने सोचना शुरू किया कि “पुराने गुरूजी ऐसा क्या करते थे कि वह लम्बे समय तक ध्यान में बैठे रहते थे ।”
पुराने गुरूजी के क्रियापलाप पर उन्होंने दिमाग दोड़ाना शुरू किया तो पता चला कि “ध्यान के समय गुरूजी एकाग्रता बनाने के लिए पास में बिल्ली को बांधते थे ।” इनका सोचना था कि ध्यान के समय पास में बिल्ली को बांधने से एकाग्रता बनी रहती है ।
 
बस फिर क्या था । नए गुरूजी ने अपने चेले को आदेश दिया कि जाओ और बाजार से एक बिल्ली खरीदकर लाओ । अब ये गुरूजी भी ध्यान के समय पास में बिल्ली को बांधने लगे । बिल्ली के बांधने से उन्हें बड़ी संतुष्टि हुई । पहले की अपेक्षा ध्यान के समय में इजाफा हुआ ।
 
इसके बाद तो जो भी शिष्य बना, सबका नियम बन चूका था कि ध्यान के समय बिल्ली को बांधना जरुरी है । इस तरह पहले गुरूजी की यह मज़बूरी अन्धविश्वास के कारण आगामी गुरुओं के लिए एक नियम बन चुकी थी । जबकि बिल्ली का ध्यान से दूर – दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं । इसी तरह होता है “अंधविश्वासों का जन्म”
 
शिक्षा – हमारे समाज और संस्कृति में भी ऐसे सैकड़ो अंध विश्वास है, जिनका कोई तुक नहीं, लेकिन लोग अंधे होकर मानते है । इसलिए बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि जिस किसी भी मान्यता, परम्परा या विश्वास के पीछे कोई तर्क, तथ्य या प्रमाण न हो, उसे अपने जीवन में न अपनाएं । आज भी लोग मानते है कि “अगर बिल्ली रास्ता काटे तो रास्ता बदल लेना चाहिए ।” और पूछा जाये कि क्यों ? तो उनके पास कोई जवाब नहीं होता । बस मानते है । ऐसी मान्यताएं आपको अन्धविश्वासी से ज्यादा कुछ नहीं बना सकती ।
 
अगर अपने द्वारा किये गये किसी कार्य का कारण नहीं दे सकते तो आप अन्धविश्वास में है ।
 
हम ऐसी भूलभुलैया में फसे हुए है जहाँ आगे कुआं पीछे खाई है । हमारे अधिकांश पढ़े – लिखे मित्र बधुओं पर विज्ञान का भूत इस कदर सवार है कि वह बहुत सी बातों को सिरे से ही नकार देते है तो वही दूसरी ओर कुछ अनपढ़ वर्ग उन बेतुकी मान्यताओं को लेकर चल रहे है, जिनसे फायेदा तो कुछ नहीं होता, उल्टा नुकसान ही नुकसान भुगतना पड़ता है । जरूरत है इन दोनों वर्गों में सामंजस बिठाने की । गाड़ी के दोनों पहियों में संतुलन बनाने की ।
 
अन्धविश्वासो की श्रृंखला बहुत लम्बी है जिनमें से कुछ ये है
 

किसी शुभ कार्य के लिए प्रस्थान करते समय किसी का छींकना
किसी शुभ कार्य के लिए प्रस्थान करते समय किसी का टोकना
बिल्ली द्वारा रास्ता काटना
गिरगिट द्वारा रास्ता काटना
टूटे शीशे में चेहरा देखना
टुटा शीशा घर में रखना
सूर्य डूबने के बाद घर की सफाई नहीं करना
मंगलवार शनिवार को नाख़ून नहीं काटना
ग्रहण लगने के समय घर से बाहर नहीं निकलना आदि

मैं नहीं कहता ये सब गलत है, लेकिन जब तक आपको इनके पीछे का कारण नहीं मालूम, आप अन्धविश्वास में है ।

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