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आत्मसमीक्षा का महत्त्व | दो चींटियो की कहानी

अक्सर लोग प्रश्न करते है कि आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए क्या करना होगा ? ऐसा क्या करें कि हम अध्यात्म को अपने जीवन में उतार सके ?

आजका विषय न केवल इन दो प्रश्नों का उत्तर है बल्कि आध्यात्मिक जीवन का आधार स्तम्भ है । जीवन को आध्यात्मिक बनाने के लिए चार चीजों की महती आवश्यकता होती है – आत्मसमीक्षा, आत्मसुधार, आत्मनिर्माण और आत्मविकास ।

इन चारों में से हमारा आजका विषय है – आत्मसमीक्षा । आत्मसमीक्षा अर्थात अपने आप से प्रश्न करना, तर्क करना, अपने आपे का निरक्षण करना । इसे आत्मनिरक्षण भी कहा जाता है । आप सोच रहे होंगे कि इसकी क्या आवश्यकता है ? तो आइये जानते है ।

जब तक किसी इन्सान को उसकी कमी पता न चले, वह उसे दूर नहीं कर सकता । ठीक ऐसे ही जैसे जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ और परीक्षाएं हमें हमारी कमजोरियों से अवगत कराती है । मनुष्य की प्रकृति है कि वह केवल अपनी प्रशंसा और तारीफ सुनना पसंद करता है । लेकिन जब किसी वजह से उसकी निंदा की जाती है तो वह व्यक्ति उस बात से बहुत अधिक व्यथित हो जाता है और उस वजह को ही दूर करने की कोशिश करता है, जिसके कारण उसकी निंदा की जा रही थी ।

जैसे मान लीजिये कोई व्यक्ति खूब नशा करता है । हो सकता है, आजतक उसे कोई बताने वाला नहीं मिला हो कि नशा करना गलत बात है । अब संयोग से वह व्यक्ति ऐसे वातावरण में आ जाता है, जहाँ नशा करने वाले लोगों को हीन दृष्टि से देखा जाता है, उनकी निंदा की जाती है आदि –आदि । अब वह व्यक्ति क्या करेगा ? या तो लोगों के तानों से तंग आकर नशा छोड़ने की कोशिश करेगा या फिर छुप – छुपकर नशा करेंगा या फिर उस स्थान को ही छोड़ देगा । संभावना कुछ भी हो सकती है, लेकिन यदि उसे अपने नाम की थोड़ी भी परवाह है तो वह या तो नशे की लत को छोड़ देगा या फिर लोगों से छुपायेंगा । कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता कि लोग उसकी बुराई करें ।

आत्मा हमेशा प्रशंसा में प्रसन्न और निंदा में दुखी होती है । इसी से यह सिद्ध होता है कि हमेशा प्रशंसा के कार्य, अर्थात अच्छे कार्य आत्मा के अनुकूल होते है । इसके विपरीत निंदा के कार्य अर्थात बुरे कार्य हमेशा आत्मा के प्रतिकूल होते है ।

आत्मसमीक्षा इन्ही कार्यों और गुणों का मूल्याङ्कन करने का साधन है कि क्या आत्मा के अनुकूल है और क्या प्रतिकूल ?

आत्म + समीक्षा = अर्थात स्वयं, स्वयं का मूल्याङ्कन करना । हमारे जीवन के अधिकांश मूल्याङ्कन दूसरों से करवाएं जाते है । जैसे परीक्षा आप देते है, लेकिन आपकी कापी कोई और जांचता है । लेकिन जब बात अध्यात्म की आती है तो या तो हमारा मूल्याङ्कन समर्थ मार्गदर्शक सत्ता अर्थात हमारा गुरु करता है या हमें ही अपना मूल्याङ्कन करने की सलाह दी जाती है । क्योंकि हमें हमसे बेहतर कोई और नहीं जानता ।

बिना आत्मसमीक्षा के आत्मपरिष्कार संभव नहीं और आत्मपरिष्कार के बिना किसी भी साधना की सफलता संदिग्ध है । इसलिए आत्मसमीक्षा आध्यात्मिक जीवन का प्रथम चरण है । इसे कुछ दृष्टान्तों से बेहतर समझा जा सकता है ।

साधना सफल क्यों नहीं हुई ? | एक साधू की कहानी

एक बार की बात है । एक जंगल में एक साधू रहता था । साधू बारह वर्षों से जप – तप और ध्यान आदि कर रहा था लेकिन उसे सफलता और शांति नहीं मिली ।

एक दिन की बात है । एक अन्य महात्मा का उसकी कुटी पर आगमन हुआ । महात्मा ने रात्रि विश्राम की अनुमति मांगी । उस साधू ने अतिथि महात्मा को रात्रि विश्राम की अनुमति दे दी । बातों ही बातों में दोनों में ज्ञान चर्चा शुरू हो गई । चर्चा से साधू को पता चला कि यह तो बड़े ही विद्वान और तत्वदर्शी महात्मा है । इनसे अपनी समस्या पूछना चाहिए ।

साधू बोला – “ गुरुदेव ! एक बात बताइए । मैं बारह वर्ष से इस वन में जप – तप कर रहा हूँ, लेकिन मुझे साधना में अब तक कोई सफलता नहीं मिली । क्या आप मुझे बता सकते है कि मेरी साधना कब सफल होगी ?”

महात्मा मुस्कुराएँ और बोले – “ मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर अवश्य दूंगा । लेकिन उससे पहले तुम मेरी कहानी सुनों ।”

कहानी – एक बार घूमते – घामते एक वन में दो चीटियाँ मिल गई । आपस में बातचीत की तो पता चला कि एक शक्कर के पहाड़ पर रहती थी और एक नमक के पहाड़ पर रहती थी । नमक के पहाड़ वाली चींटी ने शक्कर के पहाड़ वाली चींटी से पूछा – “ बहन कैसी हो ?”

शक्कर के पहाड़ वाली चींटी बोली – “ मैं तो मजे में हूँ, हर समय मुंह में मिठास लेकर घुमती हूँ । तुम कैसी हो ?”

नमक के पहाड़ वाली चींटी बोली – “ मैं भी ठीक ही हूँ, लेकिन क्या बताऊ बहन ! मेरा मुंह तो हमेशा खारा रहता है ।”

शक्कर के पहाड़ वाली चींटी बोली – “ दुखी मत हो बहन ! मेरे साथ चल, हमारे शक्कर के पहाड़ पर तुम्हारा मुंह भी मीठा रहने लगेगा ।”

फिर क्या था । नमक के पहाड़ वाली चींटी, शक्कर के पहाड़ वाली चींटी के साथ चल दी । लेकिन अब भी नमक की एक डल्ली उसने मुंह में रखी थी । पहाड़ पर पहुँचकर उसने शक्कर खाना शुरू की ।

शक्कर के पहाड़ वाली चींटी ने पूछा – “ अब कैसा मुंह है, बहन ! ”

नमक के पहाड़ वाली चींटी बोली – “ अब भी खारा ही है ।”

तब शक्कर के पहाड़ वाली चीटी ने देखा कि उसने अभी भी मुंह में नमक की एक डल्ली दबा रखी है । उसने पूछा कि “ ये नमक की डल्ली क्यों दबा रखी है ।”

नमक के पहाड़ वाली चींटी बोली – “ बहन ! आते वक्त मैंने सोचा कि कहीं तुम्हारे पहाड़ वाले मुझे स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं भूखे मरूंगी । इसलिए मैं एक नमक की डल्ली मुंह में रख आई थी । लेकिन अब तो सबने स्वीकार कर लिया । इसलिए मैं यह नमक की डल्ली फेंक रही हूँ ।”

इतनी कहानी सुनाने के बाद महात्माजी बोले – “ क्यों भाई ! कुछ समझ आया ?”

साधू बोला – “ नहीं गुरुदेव ! कुछ समझ नहीं आया ।”

महात्माजी बोले – “ अरे भाई ! सीधी सी बात है । तुम भी नमक की डल्ली अपने मुंह से निकाल फेंको ।”

तब साधू को बारह साल पुरानी बात याद आई । बारह साल पहले वह एक सेठ था जो  सांसारिक जीवन की कठिनाईयों से तंग आकर घरबार छोड़कर जंगल में निकल गया था । लेकिन तब उसने यह सोचकर कि साधना में सफलता नहीं मिली तो मेरा क्या होगा ! यह सोचकर एक बेशकिमती हीरा अपनी कुटिया के पीछे छुपा दिया था । वह महात्मा उसी हीरे को नमक की डल्ली बोल रहे थे ।

बस फिर क्या था । उसे वह हीरा महात्मा को सौंप दिया और कहा कि “इसे किसी सद्कार्य में लगा देना । अब मुझे इसकी कोई आवश्यकता नहीं ।” वह हीरे का मोह ही था जिसके कारण उन्हें अब तक साधना में सफलता नहीं मिली थी ।

इस कहानी से एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलता है और वह यह कि आत्मसमीक्षा के अभाव में ही मनुष्य अपनी छोटी – छोटी लेकिन मोटी गलतियों से अनजान रहता है ।

आत्मसमीक्षा कैसे करें ?

इसके लिए जल्द ही एक विस्तृत लेख लिखा जायेगा लेकिन फ़िलहाल संक्षेप में बताना आवश्यक है ।

जब आप सुबह उठते है तो यह भावना करें कि आपका नया जन्म हुआ है । इसके लिए  ईश्वर का धन्यवाद करें । यह एक दिन आपके लिए एक जीवन के समान है । इसलिए अपने दिनभर के कार्यों की रुपरेखा सुबह ही तैयार कर ले और तथासंभव दिनभर उसी के अनुसार चलने की कोशिश करें । साथ ही यह भी निश्चय करें कि ईश्वर के दिए गये इस दिन रूपी जीवन का अच्छे से अच्छा उपयोग करेंगे । जब रात्रि को सोने जाये तो अपने दिनभर के कार्यों का मूल्याङ्कन करें । जो अच्छे कार्य किये है । उनके लिए आत्म प्रशंसा करें । ईश्वर को धन्यवाद दे । जो गलत कार्य हुए है । उनके लिए ईश्वर से क्षमा याचना करें और अगले दिन नहीं दोहराने का निश्चय करें । इसके बाद नींद रूपी मृत्यु की गोद में सो जाये । इस कार्य में आप अपनी डायरी का इस्तेमाल कर सकते है ।

अभी के लिए बस इतना ही । यदि आपको यह लेख पसंद आये तो अपने दोस्तों को शेयर करें । धन्यवाद !

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