हर चीज़ का सदुपयोग करें | महात्मा बुद्ध का उपदेश

यह उस समय की बात है, जब महात्मा बुद्ध के शिष्यों की मंडलियाँ अलग – अलग विहारों में रहा करती थी । उनके भोजनादि अन्य साधनों की देख – रेख स्वयं बुद्ध करते थे । एक दिन तथागत के एक शिष्य के वस्त्र पुराने होकर फट गये ।

वह तथागत के पास गया और सकुचाते हुए बोला – “ भगवन ! यदि आपकी आज्ञा हो तो मेरी आपसे एक प्रार्थना है ?”

बुद्ध बोले – “ हाँ ! अवश्य कहो ! क्या कहना चाहते हो ?”

शिष्य बोला – “ भगवन ! मेरे ये वस्त्र बहुत पुराने हो चुके है । ये अब पहनने के योग्य नहीं रहे, अतः कृपा करके मुझे नए वस्त्र प्रदान करें ।”

महात्मा बुद्ध ने शिष्य के वस्त्र देखे, वाकई में वस्त्र जीर्ण – शीर्ण हो चुके थे और उनके धागे भी बाहर लटक रहे थे । अतः बुद्ध ने अपने वस्तु भण्डार वाले एक अन्य शिष्य से कहकर उस वस्त्राकांक्षी को वस्त्र देने के लिए कहा ।

नए वस्त्र पहनकर वह ख़ुशी – ख़ुशी अपने विहार लौट गया ।

कुछ दिन बाद तथागत उनके विहार पहुँचे । वहाँ वह सभी को आशीर्वाद और उपदेश दे रहे थे तभी उनकी नजर उस नूतन वस्त्र पहनने वाले शिष्य पर पड़ी । उन्होंने उसे एकांत में बुलाया और पूछा – “ वत्स ! नये वस्त्र में कोई परेशानी तो नहीं है ?”

शिष्य बोला – “ नहीं ! भगवन ! मैं तो इन वस्त्रों में बड़े आराम में हूँ ।”

बुद्ध बोले – “ अच्छा ! और कुछ तो नहीं चाहिए ?”

शिष्य बोला – “ आपकी कृपा बनी रहे भगवन ! और कुछ नहीं चाहिए ।”

तब बुद्ध बोले – “ अब तुम्हें नए वस्त्र मिल गये है और इनमें तुम खुश भी हो तो तुमने पुराने वस्त्रो का क्या ?”

शिष्य बोला – “ आजकल मैं उनका उपयोग ओढ़ने में करता हूँ ।”

बुद्ध बोले – “ अच्छा ! तो तुमने अपनी पुरानी ओढ़नी को क्या फेंक दिया ?”

शिष्य बोला – “ नहीं भंते ! मैंने उसे अपनी खिड़की के परदे में लगा दिया है ।”

बुद्ध बोले – “ अच्छा तो तुमने निश्चय ही पुराने परदे फेंक दिए होंगे ।”

शिष्य बोला – “ नहीं भगवन ! पुराने परदे मैंने बिछाने के लिए उपयोग करना शुरू कर दिया ।”

बुद्ध बोले – “ तो फिर पुराने बिछाने का क्या किया ?”

शिष्य बोला – “ उनको मैंने टुकड़े करके रसोई में गर्म बर्तन उठाने के लिए रख दिया ।”

बुद्ध बोले – “ अच्छा तो रसोई के पुराने कपड़ो का क्या किया ?”

शिष्य बोला – “ उन्हें धोकर उनसे अब मैं पोछा लगाता हूँ ।”

बुद्ध बोले – “ तो फिर पुराने पोछा लगाने के कपड़ो का क्या किया ?”

शिष्य बोला – “ भगवन ! उनके तो धागे इतने बिखर गये थे कि उनका और कोई उपयोग नहीं हो सकता था । इसलिए मैंने उनके धागों की बत्तियाँ बनाकर रख ली । जिनसे रात्रि के अंधकार का निवारण किया जा सके । कल रात्रि को आपके कक्ष में जो दीपक प्रज्वलित हो रहे थे । उनमें उन्हीं बत्तियों का उपयोग किया गया था ।”

बुद्ध ने मुस्कुराते हुए अपने उस शिष्य को आशीर्वाद दिया । वह अपने उस शिष्य से संतुष्ट थे । वह मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे कि उनका शिष्य जीवन का सबसे अहम् सबक सीख चूका है । उन्हें ख़ुशी थी कि उनका शिष्य वस्तुओं की महत्ता को जानता है और अनावश्यक बर्बादी नहीं करता है ।

शिक्षा – दोस्तों ! कभी भी अपने पास उपलब्ध वस्तु को नष्ट या बर्बाद न करें । क्योंकि हो सकता है, “ जिसकी आपको जरूरत नहीं, वह किसी की जरूरत हो ।”

वास्तव में किसी चीज़ की अहमियत हमें तभी पता चलती है, जब वह हमारे पास नहीं होती है ।

आप शरीर की स्वस्थता पर उतना ध्यान नहीं देते क्योंकि आप शरीर की उतनी अहमियत नहीं समझते और इसकी स्वस्थता के लिए योग – व्यायाम और प्राणायाम को बिलकुल जरुरी नहीं समझते । कोई बताता है तो आप बहाने मार लेते हो, लेकिन शरीर की अहमियत उससे पूछो जो साल में छः महीने बीमार रहता है ।

आपके पास आँखे है लेकिन आप आँखों की कीमत नहीं समझते कुछ भी अनाप शनाप देखते रहते है, धुल मिट्टी में काम करते रहते है । लेकिन आँखों की कीमत उस अंधे से पूछो जो दुनिया देखने के लिए पल – पल तरसता है ।

आपके पास ईश्वर के दिए कितने सुन्दर दांत है, लेकिन इनका भी आप उचित खयाल नहीं रखते और कुछ भी गुटखा आदि मादक पदार्थो की जुगाली करते है, लेकिन दांतों की कीमत उससे पूछो, जिसके दांत चिता से पहले स्वाहा हो चुके है और अब वह उन चीजों को खाने के लिए ललचाता है, जिन्हें चबाने के लिए दांतों की जरूरत पड़ती है ।

सबसे महत्वपूर्ण और आखिरी बात – आपका मन और ह्रदय । क्या आप उनका खयाल रखते है ? खुद से पूछिये और खुद को जवाब दीजिये । मुझे बताने की जरूरत नहीं । क्या हमारा मन और ह्रदय पवित्र है ? क्या हम ईश्वर को नित्य याद करते है ? क्या हम परोपकार की बात सोचते है ? क्या हम स्वाध्याय करते है ? क्या हम ध्यान करते है ? क्या हम योग साधना करते है ?

सोचो ! और जितना हो सके चीजों का सदुपयोग करो । मैंने भी किया है । मेरा चम्पल टूट गया था । मैंने सिलाई करके तीन महीने चलाया है ।

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