विकारों की बलि | एक तांत्रिक साधना

यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है, जो कुछ साल पहले मैंने अपने मामा से सुनी थी । एक बार मैं तंत्र से सम्बंधित एक किताब पढ़ रहा था । उसी दिन मेरे मामा आये हुए थे । उन्होंने मेरे हाथ में तंत्र की किताब देखी तो नसीहत देते हुए ये कहानी सुनाई । इसमें कितनी सच्चाई है, ये मैं नहीं जानता, लेकिन मैंने जैसा सुना वैसा लिख दिया ।
 
मध्यप्रदेश के एक गाँव में एक सिद्ध तांत्रिक रहता था । भूत – प्रेतों के साये और काला जादू के प्रभाव को हटाने के लिए वह आस – पास के गाँव में काफी प्रसिद्ध था । दूर – दूर से लोग अपनी समस्याएं लेकर उसके पास जाते थे और जो भी समस्या उसके जानकारी की परिधि में होती, वह उसे ठीक कर देता था ।
उसी गाँव में एक किसान भी रहता था । एक दिन उसे भी तांत्रिक की तरह प्रसिद्ध होने की उमंग उठी । वह गया तांत्रिक के पास और बोला – “महाराज ! क्या मैं भी आपकी तरह सिद्ध हो सकता हूँ ?”
 
तांत्रिक उसका चेहरा देखकर ही भाप गया अतः बोला – “ तुझे सिद्ध नहीं, प्रसिद्ध होना है । प्रसिद्धि को केंद्र में रखकर मैं किसी भी व्यक्ति को तंत्र विद्या नहीं सिखाता । अगर प्राणी मात्र की सेवा और शिव को पाने की इच्छा रखता है तो मेरे पास आना ” तांत्रिक के मुंह के ऐसी बात सुनकर उसका चेहरा उतर गया क्योंकि वास्तव में वह प्रसिद्धि के उद्देश्य से ही गया था । इसलिए वह उल्टे पैर वापस लौट आया ।
 
उसने सोचा, “तांत्रिक बाबा तो सिखएंगा नहीं । मुझे खुद से ही सीखना चाहिए” ऐसा सोचकर उसने तंत्र ग्रन्थ जुटाने शुरू कर दिए । लेकिन महज किताबों से कोई कितना सीख सकता है, ऊपर से उनकी भाषा इतनी जटिल थी कि उसे कुछ भी समझ नहीं आया । तभी कहीं से उसे योग के बारे में पता चला । उसने योगदर्शन पढ़ा और जाना कि योग से भी सिद्धियों को हासिल किया जा सकता है । उसने योग का अभ्यास करना शुरू कर दिया । कुछ दिन योग के अभ्यास से उसका उद्देश्य बदल चूका था । लेकिन उसमें धैर्य की कमी थी । वह यथाशीघ्र कोई चमत्कार देखना चाहता था । आखिर वह फिर गया उस तांत्रिक बाबा के पास ।
 
इस बार उसकी प्रसिद्धि की आकांक्षा से अधिक उसकी जिज्ञासा और समर्पण भाव झलक रहा था । अतः तांत्रिक बाबा ने तात्कालिक मनःस्थिति के अनुरूप उसे तंत्र विद्या की शिक्षा देना स्वीकार कर लिया ।
तांत्रिक बोला – “ तंत्र का मार्ग का गुह्य रहस्य केवल अधिकारी गुरु द्वारा अधिकारी शिष्य के लिए ही खोला जा सकता है । इसलिए आजसे मैं तेरा गुरु और तू मेरा शिष्य है । प्रत्येक नए तंत्र प्रशिक्षु को अपने विकारों की बलि देनी होती है । तभी वह किसी भी तांत्रिक साधना के योग्य बन पाता है । यथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, भय, ईर्ष्या, द्वेष इत्यादि ।”
 
अपनी गुरु की आज्ञा के अनुरूप उसने विकारों से ऊपर उठना शुरू कर दिया और देखते ही देखते कुछ ही समय में वह अपनी इन्द्रियों का स्वामी बन गया । लेकिन पात्रता की परीक्षा तो विपरीत परिस्थितियों में ही हो सकती है । आखिर तांत्रिक बाबा ने उसे अनुष्ठान विधि बता ही दी ।
 
अब वह दिन भर शांतिपूर्वक खेतों में काम करता और रात को अपना तांत्रिक अनुष्ठान करता था । धीरे – धीरे वह साधना के उच्च सौपानों की ओर अग्रसर था । जब साधना का फल पकने लगता है तभी उसके गिरकर बिखरने का खतरा सबसे अधिक होता है । अब चला उसकी परीक्षाओं का सिलसिला ।
 
सपने में आई सुन्दरतम अप्सराओं से भी वह विचलित नहीं हुआ । बड़े से बड़ा नुकसान होते हुए भी वह बिना क्रोध किये शांतिपूर्वक सह गया । कई बार उसे बड़े – बड़े प्रलोभन मिले लेकिन वह सत्य पर डटा रहा । अहंकार तो उसका गुरु के प्रति समर्पण करते ही खत्म हो गया था । तभी एक दिन एक विस्मयकारी घटना घटित हुई ।
 
उस रात भी हमेशा की तरह वह मंदिर में अपनी साधना कर रहा था कि अचानक उसकी बेटी (एक छोटी सी बारह साल की लड़की) दोड़ती हुई आई और बोली – “पिताजी पिताजी ! बिजली के तार गिरने की वजह से अपने घर के छत में आग लग गई है ।” उसने सोचा “छत जली तो क्या हुआ, घर के सदस्य तो सुरक्षित है ।” अतः इस बात को सुनकर भी वह अनसुना करके अपनी साधना में तल्लीन हो गया । तभी उसकी पत्नी दोड़ती हुई आई और बोली – “तुम्हे हमारी कोई परवाह भी है या नहीं । वहाँ हमारा घर जल रहा है, हमारा बेटा घर में फसा हुआ है और तुम हो कि बाबाजी बने बैठे हो ।”
 
अपने बेटे का खयाल आते ही वह साधना छोड़ – छाड़कर अपने घर की ओर भागा और वहाँ जाकर देखा तो कोई आग नहीं लगी थी, अपितु बीवी बच्चे सब सुख – चैन से सो रहे थे । तब जाकर उसे खयाल आया कि यह सब मायाजाल था, उसकी साधना को भंग करने के लिए । आखिर परिवार से मोह के रहते, उसे अपनी साधना में असफल होना पड़ा ।
 
जब इस घटना की चर्चा उसने अपने गुरु से की तो उन्होंने कहा – “ हाँ हाँ ! रहने दे, वो सब मुझे पता है । तुझे पता भी है, तांत्रिक साधना को इस तरह बिचमें छोड़ने का अंजाम क्या हो सकता है ? वो तो अच्छा हुआ, मेरी तुझपर बराबर नजर थी, इसलिए वो छलावा ज्यादा देर टिक नहीं पाया । आगे से तू कोई तांत्रिक अनुष्ठान नहीं करेगा । तेरे लिए सामान्य पूजा – पाठ ही ठीक है । सुख – चैन से अपनी खेती कर और सुख शांति से जीवन व्यतीत कर । ”
 
तंत्र विद्या का अनुसरण करना तलवार की धार पर चलने के समान है । जिसके लिए साधक का पुरुषार्थी, साहसी, दृढ़ संकल्प, निर्भय और धैर्यवान होना अनिवार्य रूप से आवश्यक है । तांत्रिक साधना एक प्रकार का आक्रमण है जो प्रकृति के अंतराल में छुपी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है । जीतने वाले को सिद्धियों और विभूतियों के उपहार मिलते है और हारने वाले का कुछ भी हो सकता है । इसीलिए तंत्र विज्ञान सामान्य मनुष्यों के लिए गुप्त रखा गया है ।

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