भाग्य कैसे बदले | How to change Luck Hindi Story

अध्यात्म सागर के पाठकों के लिए आज हम लाये है, एक ऐसी कहानी, जो आपके सोचने का तरीका बदल सकती है । जो आपके भाग्य की दिशा धाराएँ बदल सकती है । जो आपके अन्दर भाग्य देवता को चुनौती देने का सामर्थ्य पैदा कर सकती है । यदि आपने उस राजकुमार से वह शिक्षा ली !

बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में सत्यजित नाम का एक राजा राज्य करता था । सभी प्रकार की सुख सामग्री और लम्बे – चौड़े राज प्रासाद होने के बावजूद भी महाराज सत्यजित व महारानी सुनीति निसंतान होने के कारण बहुत दुखी थे । संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने बहुत सारा दान – पुन्य किया, याग – यज्ञ करवाये जिससे उन्हें एक पुत्र रत्न प्राप्त हुआ । किन्तु दुर्भाग्य कि पुत्र के जन्म के कुछ ही समय पश्चात् एक षड्यंत्र में महाराज सत्यजित की मृत्यु हो गई ।

एक दिन महारानी सुनीति ने देखा कि पालने में झूल रहे राजकुमार वीरव्रत के निकट एक अलौकिक पुरुष खड़ा है । महारानी तुरंत दौड़कर उसके पास गई । वह अलौकिक पुरुष जाने ही वाला था कि महारानी ने कहा – “कौन हो तुम ? और यहाँ क्या लेने आये हो ?”
 
महारानी का दृढ़ता भरा स्वर सुन अलौकिक पुरुष ठिठक कर रुक गया और बोला – “महारानी को मेरा प्रणाम ! मैं भाग्य देवता हूँ, लोगों का भाग्य लिखता हूँ । यहाँ मैं आपके पुत्र का भाग्य लिखने आया था ।”
 
यह सुन रानी ने भाग्य देवता को प्रणाम किया । स्त्रियाँ स्वभाव से ही अत्यधिक भावुक होती है अतः महारानी बोली – “ हे देव ! यदि आप मेरे वीरव्रत का भाग्य ही निश्चित करने आये है तो कृपा करके मुझे बताइए की इसके भाग्य में क्या है ?”
 
भाग्यदेवता असमंजस में आकर बोले – “ हे देवी ! समय से पहले किसी का भविष्य बताने की आज्ञा हमें नहीं है, अतः कृपा करके आप ना पूछे तो ही बेहतर होगा ।
 
भाग्यदेवता के इस उत्तर से महारानी संतुष्ट नहीं हुई । उन्होंने फिर से हाथ जोड़कर निवेदन किया । आखिरकार भाग्य देवता को रानी पर दया आ ही गई और वह बताने के लिए मान ही गये, किन्तु उन्होंने वह बात किसी और से ना कहने का संकल्प दिया ।
 
भाग्यदेवता बोले – “ देवी ! यह कहते हुए मुझे दुःख है कि आपके पुत्र के भाग्य में राजकुमार बनना नहीं लिखा है । यह जंगल में जानवरों के बिच पलकर बड़ा होगा ।”
 
भाग्य देवता की यह बात सुनकर महारानी की आंखे भर आई । महारानी के दर्द को जानकर भाग्य देवता ने कहा – “हे देवी ! इसे राजकुमार तो मैं नहीं बना सकता किन्तु मैं इतना वरदान देता हूँ कि जब भी यह जाल डालेगा उसमें एक हिरण अवश्य फसेगा । जिससे यह कभी भूखा नहीं मरेगा ।” यह कहकर भाग्य देवता वायु में विलीन हो गये ।
 
थोड़ी देर बाद एक गुप्तचर दौड़ता हुआ आया, थोड़ा रुकते हुए महारानी से बोला – “ आपके लिए एक सन्देश है, महाराज के हत्यारे का पता चल चूका है ।”
 
महारानी – “ कौन है वह दुष्ट ?”
 
गुप्तचर – “ और कोई नहीं महारानी जी उनका अपना भाई नरपति है । बहुत ही जल्द वह राजकुमार की हत्या करके राज सिंहासन हथियाना चाहता है ।”
 
यह समाचार सुनकर महारानी रातों – रात राजकुमार और अपने कुछ विश्वस्त साथियों को लेकर उस नगर की सीमा से बाहर निकल गई और एक सुनसान और वियवान जंगल में झोपड़ी बनाकर रहने लगी ।
 
इधर नरपति दिनरात महारानी और राजकुमार को खोजने लगा । बहुत कोशिशों के बावजूद भी जब उसे कोई परिणाम नहीं मिला तो वह स्वयं राजा बन गया ।

अब महारानी सुनीति जंगल में अपने बेटे वीरव्रत के साथ रहने लगी । सुनीति दिन में लकड़ियाँ काटने जाती और शाम को बाजार बेचकर अपना गुजारा चला रही थी । बालक वीरव्रत दिनभर जंगली जानवरों के साथ खेलता रहता ।
 
दिन पर दिन बीतते गये । धीरे – धीरे बालक वीरव्रत बड़ा होने लगा और माँ के साथ लकड़ियाँ काटकर गुजारा करने लगा । किन्तु जंगल कम होने व लकड़ियों के दाम गिरने से उनका गुजारा मुश्किल हो गया । एक दिन माँ ने वीरव्रत को शिकार पर जाने को कहा । जिन जानवरों के साथ वह खेलकुद कर बड़ा हुआ उन्हीं का वह शिकार करे, यह बात उसे बिलकुल मंजूर नहीं थी, किन्तु क्या करता माँ की आज्ञा और जीवन का सवाल था ।
 
वह जहाँ भी जाल बिछाता, उसमें हिरण आ फसता था । माँ को भाग्य देवता वाली बात पता थी । एक दिन उसने भाग्यदेवता वाली पूरी घटना वीरव्रत को सुना दी ।
 
फिर क्या था । वीरव्रत को भाग्यदेवता पर बहुत गुस्सा आया । उसने भाग्यदेवता को चुनौती देने की ठान ली । अब वह जाल ऐसी जगह बिछाने लगा जहाँ हिरण नहीं आ सके ।
 
एक दिन उसने जाल बिछाकर उसके चारों तरफ आग लगा दी । किन्तु जब उसने जाकर देखा तो उसमे हिरण फ़स चूका था । उसे बहुत गुस्सा आया ।
 
दुसरे दिन उसने नदी के बीचों – बिच जाल बिछा दीया । किन्तु जब जाकर देखा तो वहां भी हिरण फ़स चूका था । वह दुखी होकर सोचने लगा ।
 
अब उसने एक पेड़ पर जाल बिछाया और घर चला गया । जब आकर देखा तो वहाँ भी हिरण फ़स चूका था । इस बार उसने अपने घर में जाल बिछाने की सोची ।
 
घर में जाल बिछाकर वह बाहर पहरा देने लगा और भीतर माँ को बिठा दिया । “देखता हूँ अब भाग्य देवता कैसे बचकर जाता है ।”
 
आखिरकार हार मानकर भाग्य देवता उसके सामने प्रकट हो ही गये और कहने लगे – “तुम क्या चाहते हो ? तुम्हें वरदान नहीं चाहिए तो ना सही पर मुझे यूँ परेशान ना करो !”
 
वीरव्रत बोला – “परेशान मैंने आपको नहीं, आपने मुझे और मेरी माँ को किया है ।आप ही है ना वह जिसने मेरा ऐसा जंगलों वाला भाग्य लिखा ?”
 
भाग्यदेवता – “ मैंने तुम्हे वरदान भी तो दिया है !”
 
वीरव्रत तैश में आकर – “ अपना वरदान अपने पास रखो, मुझे नहीं चाहिए ऐसा हिंसक वरदान ।अगर मेरे लिए कुछ कर सकते है तो मेरा भाग्य बदल दे ।”
 
भाग्यदेवता – “ भाग्य बदलना तो मेरे हाथ मैं नहीं, तुम्हारे अपने कर्मों पर निर्भर है । यदि तुम अपने काकाश्री से लड़ने का पुरुषार्थ करो, तो तुम्हारा भाग्य बदल सकता है ।”
 
वीरव्रत को अब बात समझ में आ गई । उसने नगर जंगली लोगों की सेना बनाई और युद्ध करके अपना खोया हुआ राज्य फिर से हासिल कर लिया ।
 
कहानी में कितनी सच्चाई है, यह उतने महत्त्व का नहीं है, जितनी की कहानी से मिलने वाली शिक्षा का महत्त्व है ।
 
मित्रों ! इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि इधर – उधर ज्योतिषियों के चक्कर काटने से कोई फायेदा नहीं होने वाला, यदि आप चाहते है कि आपका भविष्य आपके सपनों के अनुरूप हो तो कभी भी भाग्य के भरोसे ना बैठे, प्रतिदिन पुरुषार्थ में लगे रहे । आपको आपकी मंजिल अवश्य मिलेगी । यह कहानी आपको अच्छी लगी हो तो हमें साभार लिखे और अपने दोस्तों को अवश्य शेयर करे ।

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