देवयानी के पिता शुक्राचार्य राजा वृषपर्वा के गुरु थे और शर्मिष्ठा राजा वृषपर्वा की पुत्री थी । अतः देवयानी और शर्मिष्ठा दोनों सखी थी । एक बार की बात है कि देवयानी और शर्मिष्ठा अपनी सखियों के साथ एक उद्यान में खेल रही थी । एक राजकन्या तो एक ब्राह्मण कन्या दोनों ही अद्वितीय सुंदरी थी । खेल – खेल में वह सब पास अपने – अपने वस्त्र उतारकर पास के ही जलाशय में जलक्रीड़ा करने लगी । संयोग से उसी समय देवराज इंद्र का उस उद्यान में आगमन हुआ । इंद्र ने कन्याओं को जलक्रीड़ा करते देखा तो वायु का रूप धारण कर उनके वस्त्रों को एक जगह मिला दिया । सभी सखियाँ दोड़ – दोड़कर अपने – अपने वस्त्र पहनने लगी ।
जल्दबाजी में शर्मिष्ठा ने देवयानी के वस्त्र पहन लिए, इसपर देवयानी बहुत क्रोधित हुई और बोली – “रे शर्मिष्ठा ! एक राक्षस कन्या होकर तूने ब्राह्मण कन्या के वस्त्र पहन लिए, मैं अपने पिता से तेरी शिकायत करूंगी ।”
देवयानी के मुंह से ऐसी कटु बातें सुनकर राजकुमारी शर्मिष्ठा से रहा नहीं गया । वह भी आग – बबुली होकर देवयानी से लड़ने लगी । दोनों में मारपीट हुई और शर्मिष्ठा ने देवयानी को पास के ही कुएं में धक्का देकर चलती बनी ।
संयोग से उसी समय राजा ययाति शिकार करते हुए जल की तलाश में उस कुएं के पास आ भटके । प्यास तेज लग रही थी अतः उन्होंने कुएं में झाँका तो देखते है कि अँधेरे कुएं में कोई स्त्री नग्न अवस्था में खड़ी है । राजा ययाति ने अपना अंगवस्त्र डाला और हाथ पकड़कर देवयानी को बाहर निकाला ।
प्रसन्नता पूर्वक बाहर निकलने पर देवयानी ने राजा ययाति से कहा – “ हे आर्यश्रेष्ठ ! आपने मुझे ऐसी अवस्था में देखा और मेरा हाथ पकड़कर बाहर निकाला अतः मैं आपको अपने पति के रूप में स्वीकार करती हूँ । मैं असुराचार्य शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी एक ब्राह्मण पुत्री हूँ किन्तु देव गुरु बृहस्पति के पुत्र कच के श्राप के कारण मेरा विवाह किसी ऋषि कुमार से नहीं हो सकता । अतः आप मुझे स्वीकार करें । राजा ययाति ने देवयानी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया ।
इस घटना के पश्चात् राजा ययाति तो चले गये लेकिन देवयानी उसी स्थान पर खड़ी रही, जब तक कि ढूंढते – ढूंढते उसके पिता शुक्राचार्य वहाँ न आ पहुंचे । जब उन्हें देवयानी ने सारी बात बताई तो वह बहुत नाराज हुए और दुखी होकर नगर छोड़कर जाने लगे ।
शुक्राचार्य के नगर छोड़कर जाने की बात जब महाराज वृषपर्वा को पता चली तो उन्होंने उनसे वही रुकने के लिए विनती की । किन्तु शुक्राचार्य अपनी पुत्री के विवाह पर शर्मिष्ठा को दासी के रूप में भेंट दिए जाने का वचन लेकर ही राजी हुए । वृषपर्वा ने शुक्राचार्य को वचन दे दिया ।
अपने वचन के अनुसार वृषपर्वा ने राजा ययाति के साथ देवयानी के विवाह में शर्मिष्ठा को दासी के रूप में भेंट किया ।
इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि यहाँ शर्मिष्ठा की छोटी सी गलती ने उसे जीवनभर के लिए देवयानी की दासी बना दिया . किन्तु क्या शर्मिष्ठा के लिए देवयानी द्वारा दी गई यह सजा देवयानी को ही महँगी पड़ने वाली थी ? जानने के लिए देखिये अगला लेख –
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