भूत – प्रेत की सच्ची घटना | क्या वो चुड़ेल थी ?

आज के इस लेख मैं भूत – प्रेत की एक सच्ची घटना का उल्लेख करूंगा, जो मैं और मेरे दो दोस्तों के साथ घटित हुई है । जिससे उन लोगों का भ्रम दूर हो सके, जो भूत – प्रेतों में विश्वास नहीं करते । यह लेख मैं किसी को डराने या भूत – प्रेतों के भय से भयभीत होने के लिए नहीं लिख रहा हूँ । बल्कि मेरा उद्देश्य है कि आप इस विषय की गहराई को समझे और अपने स्तर पर प्रयोग – परिक्षण करें ।
क्या वो चुड़ेल थी ?
 
यह बात लगभग 2004-05 की रही होगी, जब मैं चौथी या पांचवी कक्षा का विद्यार्थी था । समय मुझे ठीक – ठीक याद नहीं रहा, लेकिन इतना याद है कि बरसात का मौसम था । दोपहर के समय आधी छुट्टी होती थी । मिड – डे मील के अंतर्गत उबले हुए गेंहू की गुड़ के साथ गुगरी हमें स्कूल में ही खाने को मिलती थी । लेकिन उसके बाद भी हम घर जाते थे । कभी – कभी तो नहाने के बहाने कुएं में कूदने भी निकल जाते थे । दोपहर को तैरना ! अजीब है ना ! आपको यह अजीब लग रहा होगा लेकिन ये सच है । नया – नया तैरना सीखे थे, इसलिए कभी कभी तो दिन में 6 बार भी तैरना हो जाता था । वो सब एक पागलपन था, जिसके बारे में सोचकर अब हंसी आती है ।
 
हमेशा की तरह उस दिन भी दोपहर की आधी छुट्टी हुई । हम कभी – कभी मिड – डे मील नहीं खाते थे, क्योंकि कभी कभी गुगरी से केरोसिन की बदबू आती थी । शायद बनाने वाले चूल्हा जलाने के लिए करोसिन का इस्तेमाल करते थे । जिससे उनके हाथ भी केरोसिन में हो जाते होंगे और उन्हीं हाथों को बिना धोएं गुगरी बना डालते होंगे । खैर जो भी हो ।
 
उस दिन हमने गुगरी नहीं खाई । हम तीन दोस्त थे । राजेन्द्र, जगदीश और मैं । घर आकर हमने खाना खाया और मोर के पंख जुटाने के लिए हमारे बाड़े की ओर चल दिए । बाड़ा गाँव से लगभग 10-15 मिनट के रास्ते पर है । हमारे बाड़े में जाने के दो रास्ते है । एक शार्टकट है, किन्तु बरसात का मौसम होने से वह रास्ता उस समय बंद था । इसलिए हम लम्बे रास्ते से गये ।
 
हम मोर के पंख तलाश करते हुए सबके बाड़े में घुमने लगे उसके बाद मेरे बाड़े में आये । वहाँ हमें एक – दो मोर के पंख मिले भी थे शायद ! मेरे बाड़े के बाद जगदीश के बाड़े का नंबर आता है । हम उसमें भी घूमें । बाड़े में उस समय 7-8 इंच बड़ी घास थी और मोर के पंख भी दूर से लगभग हरे ही दीखते है । इसलिए हमें लगभग पुरे बाड़े में घूमना होता था । जगदीश के बाड़े में उसे कोई काम था, इसलिए उसे वही छोड़कर हम आगे बढ़ गये । अगला नंबर राजेन्द्र के बाड़े का था ।
 
राजेन्द्र के बाड़े में ज्यादातर पेड़ पोधे थे । दो बांस के बड़े गुच्छे और तीन – चार बकान के बड़े पेड़ थे । राजेन्द्र बाड़े के ऊपरी छोर पर था और मैं नीचे के छोर पर था । जहाँ मैं था उसी साइड पेड़ – पौधे ज्यादा थे । मोर के पंख ढूंढते – ढूंढते जब मैं एक बकान के पेड़ के साइड गया तो मैंने एक औरत को सफ़ेद वस्त्रों में देखा । मुझे लगा राजेन्द्र की माँ होगी । तो मैं बोला – “ बाई !” मैंने इतना ही कहा था कि उसने गर्दन ऊपर उठाई और घूँघट हटाया । काली आंखे और बदसूरत चेहरा देखकर मैं कांप गया । उसकी आंखे ऐसे थी जैसे उसने बुरी तरह काजल लगा रखा हो । मैं डरकर भागा और बाड़े की बाड़ कूदकर बाहर निकलकर राजेन्द्र पर चिल्लाने लगा – “ बाहर आ – बाहर आ ! देख यहाँ कोई है !।”
 
वह पूछने लगा कौन है । मैंने इशारे से उसे बताया । इतने में वो डरावनी चुड़ेल खड़ी हो गई । जैसे ही उसने उसकी शकल देखी, वो डरकर भागा । उसे भागता देख मैं और आगे भागा । हम दोनों वहाँ से कुछ ही दुरी पर एक बरगद के पेड़ के नीचे खड़े होकर जगदीश पर चिल्लाने लगे । उसे आने के लिए पुकारने लगे । वो उसके बाड़े से निकलकर आया और पूछने लगा – “ क्या हुआ ? कोई सांप देख लिया क्या ?”
मैंने दबी हुई आवाज में कहाँ – “ अरे वहाँ उस बकान के पेड़ के नीचे एक डरावनी औरत है ।” हममें से वही बड़ा और थोड़ा निडर था । मेरी बात की उपेक्षा करते हुए वह बोला – “ अरे यार ! राजेन्द्र की दादी होगी । घर में कोई लड़ाई हो गई होगी इसीलिए यहाँ आकर बैठ गई होगी ।” यह कहते हुए वह उस पेड़ की ओर गया जहाँ वह औरत बैठी थी ।
 
वह इतना बेपरवाह था कि सीधा उसके पास चला गया और बोला “बाई !” जब उसने उसकी तरफ देखा तो उसके पसीने छुट गये । वह इतनी तेजी से वहाँ से भागा कि उसने रास्ता देखना भी उचित नहीं समझा । सीधा बाड़े की बाड़ कूदकर हमारे पास आ गया । लेकिन जल्दबाजी में उसकी चप्पल रास्ते में ही खुल गई । उसे भागता देख हम भी भाग लिए । भागते – भागते हम गाँव में आ गये । गाँव में घुसते ही हमें पहले व्यक्ति कन्हैयालाल जी मिले । उनका घर वहाँ पास में ही था । हांफते हुए हमने सारी बात उनको बताई । वो बोले – “ चलो ! मुझे दिखाओ ।”
 
हम उनको लेकर वहाँ गये लेकिन तब वहाँ कोई नहीं था । हमने आस – पास दूर – दूर तक देखा लेकिन कोई नजर नहीं आया । आखिर बच्चो की बात पर कौन विश्वास करता । वह भी ऐसी ही बात बोलकर चल दिए । जगदीश ने अपने चप्पल लिए और हम तीनों घर आकर स्कूल के लिए निकल गये ।
 
अब मैं नहीं जानता कि वह कौन थी, कहाँ से आई थी और 3-4 मिनट में कहाँ गायब हो गई ? लेकिन उसकी शक्ल आज भी मेरे दृष्टि पटल पर है । जहाँ तक मुझे पता है, हमारे गाँव में कोई भी औरत सफ़ेद वस्त्र नहीं पहनती तो उसने क्यों पहन रखे थे ? अगर वो कोई थी भी तो उसका हमें दिखना महज एक संयोग था । क्योंकि उसने हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाया । ना ही उसने हमें डराने की कोशिश ही की । शायद कोई परेशान आत्मा होगी !
 
अब मैं सोचता हूँ कि क्या वो चुड़ेल थी ? काश वो बोलती, काश हमने उससे बात की होती ! कुछ तो पता चलता !

4 thoughts on “भूत – प्रेत की सच्ची घटना | क्या वो चुड़ेल थी ?”

  1. Pingback: भूत प्रेत की सच्ची कहानिया - Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

  2. Bloody mary ek daayan hai ye main nahi janta ye kahani internet me published kiya ja raha hai aur ise main bhi read kar chuka hoon internet me iski kai jagah alag alag post kiye gaye hai par main read kar chuka hoon bloody mary ka test bhi kar chuka hoon par mujhe kuch mehsus na hua hai na maine dekha kai log kehte hai raat me mirror ke sampne ek mombatti sirf jalna chahiye aur har ek kamra aur room ka light switch off hona chahiye aur mirror ke samne khade hokar mirror me dekh kar 3 baar bloody marry pukaro woh tumhe dikhai degi maine to ise raat ke waqt kar ke dekha mujhe to kuch nahi dikha agar kuch aur jada jankari ho to mujhe comment karo

  3. Bhut pret hote hai ya nahi iske baare me mujhe kuch pata toh nahi hai par logo ko is andhvishwashi se ghire dekha hoon ek baar ki baat hai mere dost ke bhai ko kabrishtan ke paas dekha gaya jab use ghar laya gaya to wo ajeeb bartao kar raha tha khana ajeeb tarah se kha raha tha aur bhi bahut tarah ki ajeeb ajeeb harkate kar raha tha usi doran main koi logo se suna isme (jin)jinnath bhut khabbis aadi log keh rahe the kya ye sach hota hai reply kare

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