मनोनिग्रह की अनोखी कहानी | बुद्धिमान की परीक्षा

एक राजा था । एक दिन उसने महामंत्री के सामने राज्य में ज्ञानियों की परीक्षा करने का प्रस्ताव रखा । इसके लिए महामंत्री ने महाराज को एक उपाय बताया । उस उपाय के अनुसार राजा ने एक हट्टा – कट्टा बकरा पाला और पुरे राज्य में घोषणा करवाई कि “जो कोई भी विद्वान इस बकरे का पेट भर देगा, उसे एक सहस्त्र स्वर्ण मुद्राओं का पुरस्कार प्रदान किया जायेगा । जो कोई भी स्वयं को इस कार्य के योग्य समझता हो, वह अपना नाम दर्ज करवा कर सुबह से शाम तक बकरे को अपने साथ रख सकता है । लेकिन बकरे का पेट भरा या नहीं, इसकी परीक्षा राजा स्वयं ही करेगा ।”
 
एक सहस्त्र स्वर्ण मुद्राओं के बारे में सुनकर हर कोई खुद को आजमाना चाहता था । राज्य के लगभग सभी लोगों ने अपना नाम दर्ज करवा दिया । जिसकी भी बारी आती, वो बकरे को अपने साथ ले जाता था । सुबह से शाम तक तरह – तरह के अन्न और घास आदि खिलाता था और यह उम्मीद करता कि बकरे का पेट भर गया होगा । निश्चित ही इनाम उसे ही मिलेगा । लेकिन जब राजदरबार में राजा बकरे के सामने घास डालता तो बकरा अपनी आदत से मजबूर घास खाने लगता था । उसे भूखा घोषित कर दिया जाता और स्वयं को विद्वान सिद्ध करने आया व्यक्ति स्वयं लज्जित होकर चला आता था । इस तरह कई लोगों ने प्रयास किया किन्तु सब बकरे का पेट भरने में असफल रहे ।
 
तभी एक दिन एक चतुर व्यक्ति की बारी आई । वह बकरे को अपने खेत पर ले गया और खुले घास के मैदान में छोड़कर स्वयं एक छड़ी लेकर उसके सामने खड़ा हो गया । अब बकरा जैसे ही घास खाने के लिए मुंह खोलता, वह व्यक्ति उसके मुंह पर जोर से छड़ी मारता । ऐसा कई बार हुआ और बकरे ने छड़ी खाने से बेहतर भूखा रहना पसंद किया । इस तरह बकरे की एक नयी आदत पड़ गई । अब वह जब भी उस व्यक्ति को छड़ी लिए सामने खड़ा देखता, घास की ओर से अपना मुंह ही हटा लेता था । इस तरह बिचारा बकरा उस दिन पूरा दिन भूखा ही रहा ।
 
शाम होते ही वह बकरे को राजदरबार में लेकर पहुंचा । हमेशा की तरह राजा ने बकरे को चारा डाला लेकिन इस बार उस छड़ी वाले व्यक्ति को सामने ही खड़ा देख बकरे ने घास की ओर से मुंह फेर लिया । यह देखकर पूरा दरबार तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा । उस व्यक्ति को विद्वान घोषित किया गया और एक सहस्त्र स्वर्ण मुद्राओं के पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
 
लेकिन अब भी अधिकांश व्यक्ति बकरे के पेट भरने का रहस्य जानना चाहते थे । अतः राजा ने उस व्यक्ति को रहस्य बताने का आग्रह किया । वह व्यक्ति बोला – “ इस बकरे की तुलना हमारे मन से कर लो सारा रहस्य समझ में आ जायेगा । जिस तरह कितना ही कुछ खिलाने – पिलाने के बाद भी हमारा मन अतृप्त ही रहता है उसी तरह ये बकरा भी खाने के लिए अपनी आदत से मजबूर है । मैंने इसकी आदत को समझा और उस आदत के विपरीत एक नयी आदत बना डाली । बस यही रहस्य है कि पुरे दिन से भूखा होते हुए भी बकरा घास नहीं खाया ।”
 
शिक्षा – हमारा मन भी ऐसा ही बकरा है । जब तक उसकी हर डिमांड के सामने भी आप छड़ी लेकर खड़े नहीं होते, वह आपको कठपुतली की तरह नचाता ही रहता है । लेकिन जब आप उसकी हर डिमांड पर संकल्पों की छड़ी लगा देते है तो वह उन विषय भोगो की ओर से स्वतः ही मुंह फेर लेता है । अपने मन की हर गलती के साथ एक सजा जोड़ लो । जैसे सुबह के खाने में अतिरिक्त भोजन किया तो शाम का खाना नहीं मिलेगा । अगर ये काम नहीं किया तो एक घंटा धुप में खड़ा रहना पड़ेगा । अगर कुछ भी उल्टा सीधा खाया तो एक सप्ताह तक नमक शक्कर बंद हो जायेगा । अगर आज निर्धारित जाप पूरा नहीं किया तो अगले दिन तीन मालाएं अतिरिक्त करनी पड़ेगी ।
 
ये सजाये आप स्वयं अपने लिए निर्धारित कर सकते है और अपने मन को मजबूत कर सकते है । इसके लिए किसी बाहरी व्यक्ति की मदद लेने की कोई आवश्यकता नहीं । इस तरह आप अपनी संकल्प शक्ति को असामान्य रूप से बड़ा सकते है ।
 
हमेशा यह संकल्प लेकर चले – “जब भी गिरूंगा, दुगुने उत्साह से आगे बढूँगा ।”

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