लक्ष्मीजी कहाँ रहती है | लक्ष्मी मैया की कहानी

एक गाँव में एक बूढ़े सेठजी रहते थे । सेठजी के पास पुरखों का खूब सारा धन था और उनका व्यवसाय भी अच्छा चल रहा था । पुरे गाँव में सेठजी की अमीरी के चर्चे चलते थे । लेकिन सेठजी स्वभाव के बड़े ही नेक दिल और नम्र व्यक्ति थे । धन – धान्य से संपन्न खुशहाल परिवार को देखकर जब लोग सेठजी की प्रशंसा करते तो सेठजी कहते – “ भाई ! मेरा कुछ नहीं, सब माँ लक्ष्मी की कृपा है ।”
 
दैवयोग से एक रात सेठजी ने एक सपना देखा । सपने में सेठजी ने देखा कि स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित एक दैवी सी दिखने वाली सुन्दर लड़की उनके मुख्य द्वार से बाहर जा रही थी ।
 
सेठजी को अचरज हुआ । अतः उन्होंने पूछा – “ हे देवी ! आप कौन है ? यहाँ कब आई और अब कहाँ और क्यों जा रही है ?”
 
सेठजी के इस संबोधन से उस युवती ने पीछे पलटकर देखा और बोली – “ हे सेठ ! मैं धन – धान्य और वैभव की देवी लक्ष्मी हूँ । मैं सदियों से तुम्हारे यहाँ निवास कर रही हूँ, किन्तु अब तुम्हारे यहाँ मेरा समय समाप्त हो चूका है । अतएव अब मैं यह घर छोड़कर अन्यत्र जा रही हूँ ।”
 
लक्ष्मीजी बोली – “ हे सेठ ! तूने हमेशा मेरा सदुपयोग किया है । गरीबों की सहायता की, जनहित में कुएं, तालाब, गौशाला, संतो की सेवा, ज्ञान मंदिरों का निर्माण आदि अनेको धार्मिक कार्य तूने मेरी कृपा से किये है । तुम्हारे इन महान और चिरकाल तक पूण्य देने वाले कार्यों से प्रसन्न होकर मैं तुझे वरदान देना चाहती हूँ । अतः अपनी आवश्यकतानुसार तू जो चाहे सो मांग ले ।”
 
अब तक तो दुसरे लोग सेठजी की तारीफ करते थे लेकिन अब जब माँ लक्ष्मी सेठजी की प्रसंशा किये जा रही थी तो सेठजी का ह्रदय आनंद से झूम उठा । आँखों से आंसू बहने लगे । अब सेठजी को लग रहा था कि उन्होंने वाकई लक्ष्मी का सदुपयोग किया है । अतः भावातिरेक में रुद्ध कंठ से सेठजी बोले – “ हे माँ ! आपके दर्शन करके और वीणा से मधुर वचनों को सुनकर मैं धन्य हो गया । अतएव मुझे अब कुछ नहीं चाहिए । मेरा जीवन सार्थक हो गया । अब मैं संतुष्ट हूँ ।”
 
लेकिन यह तो सर्वविदित है कि देवी शक्तियां जब दर्शन देती है तो कुछ न कुछ तो अवश्य देती है । अतः लक्ष्मीजी बोली – “ हे निष्काम सेठ ! अपने लिए न सही, अपने परिजनों के लिए ही कुछ मांग लो ।”
तब सेठ ने कहा – “ ठीक है, मेरी चार बहुएँ है, कल उनसे पूछकर बताता हूँ, अतः कल तक के लिए आप रुक जाइये ।”
 
सुबह सेठजी ने उठकर अपनी चारों बहुओं को बुलाया और कहा कि “ रात को लक्ष्मीजी मेरे सपने में आई थी और एक वरदान मांगने को कहा । मैंने कुछ भी मांगने से मना कर दिया तो उन्होंने परिजनों के लिए मांगने का आग्रह किया । इसलिए अब तुम ही बताओ । मुझे क्या मांगना चाहिए, जिससे तुम्हारा मनोरथ सिद्ध हो ।”
 
पहले सबसे बड़ी बहु बोली – “ पिताजी ! लक्ष्मीजी तो अब जा रही है, पता नहीं, हमारे भावी दिन कैसे होंगे ? अतः आप उनसे अन्न के भंडार भर जाने को कहिये । ताकि हम कभी भूखे नहीं मरे ।”
फिर दूसरी वाली बोली – “ दीदी ! अन्न के भंडार कब तक रहेंगे ? अन्न तो सड़कर ख़राब हो जायेगा । मैं तो कहती हूँ, सोने चाँदी से तिजोरियाँ भरवा लेनी चाहिए । जिसे बेचकर अन्न और रूपये पैसे सब ख़रीदे जा सके ।”
 
इतने में तीसरी बोली – “ दीदी ! इतने सोने चाँदी की रक्षा कौन करेगा । इससे तो अच्छा है, रूपये पैसे मांगे जाये, ताकि बैंक में जमा करवाके निश्चिन्त हुआ जा सके । आजकल तो सबकुछ रूपये – पैसे से ख़रीदा जा सकता है ।”
 
सबकी बात सुनकर सबसे छोटी बहु बोली – “ पिताजी ! अगर लक्ष्मीजी जाएगी तो उनसे कितना ही धन मांग ले, वो भी नहीं टिकने वाला और धन – दौलत वैसे भी हमेशा रहने वाला नहीं है । यदि हम अपने बच्चो के लिए ढेरों धन छोड़ेंगे तो वह अहंकार और आलस्य में कोई काम नहीं करेंगे । धन का दुरुपयोग करेंगे जो अलग । अतः आप लक्ष्मीजी से कहियेगा कि हे देवी ! आपको जाना है तो जाइये किन्तु इतना वरदान देते जाइये कि हमारे घर में हमेशा धार्मिकता का वातावरण बना रहे । साधू संतो और सज्जनों की हमेशा सेवा होती रहे । सभी परिजनों के ह्रदय में ईश्वर की आस्था बनी रहे । सभी में आपसी प्रेम और अपनत्व का भाव हमेशा बना रहे । यदि इतना हो सके तो संपत्ति के बिना भी विपत्ति के दिन आसानी से कट जायेंगे ।” सेठजी को छोटी बहु की बात पसंद आई । उन्होंने ऐसा ही कहने को बोला ।
 
उस रात फिर से लक्ष्मी जी सेठजी के सपने में आई और बोली – “ पूछ लिया सेठ अपनी बहुओं से ?”
सेठ ने कहा – “ हाँ माते ! आपको जाना है तो ख़ुशी से जाइये, लेकिन इतना वरदान देते जाइये कि मेरे घर में हमेशा धार्मिकता का वातावरण बना रहे । मेरे परिजन हमेशा साधू – संतो और सज्जनों की सेवा करते रहे । सभी में आपसी प्रेम बना रहे । यदि इतना हो सके तो संपत्ति के बिना भी विपत्ति के दिन आसानी से कट जायेंगे ।”
 
यह सुनकर लक्ष्मीजी विस्मित होकर बोली – “ यह क्या मांग लिया, सेठ ! जिस घर में साधू – संतो और सज्जनों की सेवा होती है, धार्मिकता का वातावरण बना रहता है और परिजनों में परस्पर प्रेम होता है, वहाँ तो स्वयं श्री हरि का निवास होता है । और जहाँ श्री हरि का निवास होता है, उसे तो मैं चाहकर भी नहीं छोड़ सकती क्योंकि मैं तो उनके चरणों की सेविका हूँ । यह वर मांगकर तुमने मुझे इसी घर में रहने को विवश कर दिया है । जिसने भी तुम्हे यह युक्ति सुझाई वह निश्चय ही चतुर, धार्मिक और बुद्धिमान है । यह वर देकर लक्ष्मीजी उसी घर में रहने लगी ।”
 
शिक्षा – इस कहानी की शिक्षा कहानी में ही स्पष्ट है । यदि आपको यह कहानी पसंद आई हो तो अपने दोस्तों को शेयर करें और ह्रदय से माँ लक्ष्मी और श्री हरि का स्मरण करें और इसी के अनुरूप अपने घर का वातावरण बनाने की चेष्टा करें ।
 
जय माँ लक्ष्मी – जय श्री हरि

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