आत्मा परमात्मा का मिलन संबंध

ईश्वर को लेकर लोगों की अजीब मान्यताएं है । कोई ईश्वर की मनुहार कर रहा है, उन्हें तरह – तरह के लोभ देकर बहलाने और फुसलाने की कोशिश करता है और फिर कहते है – “ यह भक्ति है ।” हो सकता है आपको बुरा लगे लेकिन यह भक्ति नहीं जालसाजी है । यह आपकी मुर्खता है कि आप ईश्वर को अपने जाल में फ़साना चाहते है ।
 
यह सब दुनिया में इसलिए हो रहा है क्योंकि असल में लोग ईश्वर को जानते नहीं । इसलिए जब कोई ढोंगी बाबा आपको कहता है – “ उस देवता के वहाँ, यह – यह कर दो ! आपका काम हो जायेगा ।” और आप बिना कुछ सोचे समझे वह सब करने लगते हो । हमारा काम हो न हो उस बाबा का काम हो रहा है । मैं यहाँ किसी का विरोध नहीं करना चाहता लेकिन सत्य का समर्थन करना ही ईश्वर की इच्छा है ।
आज सुबह जब मैं ध्यान कर रहा था तब मुझे इस लेख की प्रेरणा हुई । उसी बात को आप तक पहुँचाने के लिए मैंने यह लेख लिखा है ।
 
यदि हम आत्मा और परमात्मा के संबंध को समझ सके । यदि हम जीव और ईश्वर के संबंध को समझ सके तो फिर देखिये जीवन कितना आसान हो जाता है । बस समझ का फेर है । मेरी बात इतनी जटिल भी नहीं है कि आपको समझ ना आये किन्तु कभी – कभी मोटी – मोटी बातों को पकड़ने के चक्कर में लोग छोटी – छोटी लेकिन मूलाधार बातों को छोड़ देते है । जो मैं बताने जा रहा हूँ, उस पर आपको केवल गौर करना है, चिंतन करना है । मैं नहीं कहता कि आपको मानना ही पड़ेगा । अच्छा लगे तो बढ़िया और नहीं लगे तो छोड़ो ।
 
यह तो लगभग सभी जानते है कि दुनिया में ईश्वर एक है । यदि आप नहीं जानते है तो देवताओं का रहस्य जान ले । सभी बातों को एक ही लेख में डालकर मैं इसे जटिल (Complicate) नहीं बनाना चाहता । इसलिए जहाँ कहीं भी जो भी लिंक आपको दिखे उससे सम्बंधित जानकारी उस लिंक पर जाकर पढ़ ले ।
लगभग सभी मानते है कि ईश्वर है लेकिन सभी जानते नहीं । कुछ लोग मानते भी नहीं जिन्हें आधुनिक वैज्ञानिक कहा जाता है । लेकिन जितने भी महान वैज्ञानिक हुए है, सभी ने ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया है । लोग ईश्वर को जानते नहीं इसलिए उनकी मान्यताएं केवल विश्वासों पर टिकी हुई है । जिनमें से अधिकांश को अन्धविश्वास कहा जाये तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी । इस पर मैं ज्यादा बहस नहीं करना चाहूँगा लेकिन अंधविश्वास आपको अंधकार की ओर ही ले जा सकता है । प्रकाश की ओर नहीं !
 
इतनी बात सुनने के बाद अब आपका प्रश्न होगा कि “ ईश्वर क्या है ? कैसा है ? और उससे संबंध कैसे स्थापित किया जा सकता है ? ” बस इसी प्रश्न का उत्तर मैं देना चाहता हूँ । मैं केवल एक उदहारण से आपको पूरी बात स्पष्ट करने की कोशिश करूंगा । तो चलिए आत्मा – परमात्मा के संबंध को अपने दैनिक जीवन के किसी संबंध से समझने की कोशिश करते है ।
 
जब हम दुनिया में आये तो हमारा सबसे पहला संबंध कोनसा बना । सभी जानते है – माँ का संबंध ! पिता तो जन्म के बाद होता है लेकिन उससे ९ महीने पहले ही जब हम पेट में आये तभी से हमारा और माँ का संबंध हो गया था । अब यदि ईश्वर की बात की जाये तो इस माँ से भी पहले हमारा संबंध उस ईश्वर से है । उसे आप माँ कहलो या पिता कहलो कोई फर्क नहीं पड़ता । क्योंकि आत्मिक स्तर पर स्त्री – पुरुष जैसा कोई अस्तित्व नहीं होता । इस जगत के संबंध तो बनते बिगड़ते रहते है लेकिन ईश्वर से हमारा शाश्वत सम्बन्ध है ।
 
जिस तरह माँ हमेशा अपने बच्चों से प्रेम करती है । उसी तरह ईश्वर भी हमेशा हमसे प्रेम करता है । जिस तरह माँ को अपने बच्चों की चिंता लगी रहती है, उसी तरह ईश्वर को उससे भी अधिक हमारी चिंता रहती है । अब यहाँ कुछ लोग पूछते है कि फिर भी इन्सान दुखी क्यों है ? अगर ईश्वर को हमारी इतनी ही चिंता है तो फिर हमारी चिंताओं को दूर क्यों नहीं करता ।
 
इसी बात को समझाने के लिए मैंने माँ का उदहारण लिया । क्योंकि माँ ईश्वर से अधिक समानता दर्शाती है । इन्सान परेशान इसलिए है क्योंकि वह ईश्वर से विमुख है । जब तक बच्चा माँ के पेट में रहता है, तब तक उसकी हर परेशानी माँ की परेशानी होती है । माँ अपने बच्चे के लिए खाने – पिने, उठने – बैठने, सोने – जागने तक की सभी बातों का ध्यान रखती है । वह अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखती है कि कहीं उसके पेट में बैठे बच्चे को कोई तकलीफ ना हो जाये । जो माँ खाती है, उसी से उसे पोषण मिलता है । जैसे माँ – पिता के गुण है उन्हीं को वह धारण करता है । लेकिन जब वह बाहर आकर धीरे – धीरे बड़ा होने लगता है तो माँ से दूर होने लगता है । प्रारंभ में माँ उसे बोलना सिखाती है, चलना सिखाती है, खाना – पीना सिखाती है, पिता उसे कमाना सिखाता है । लेकिन एक दिन दुनिया की मोह माया उसे इतनी प्रिय लगने लगती है कि एक समय बाद वो माता – पिता को भूल जाता है । कभी – कभी तो वह बच्चा माँ को दुत्कार भी देता है और प्रताड़ित भी करता है । ऐसा कृतघ्न बच्चा चिंताओं से नहीं घिरेगा तो क्या होगा ? मैं सांसारिक माँ की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं ईश्वर बात कर रहा हूँ ।
 
ईश्वर भी इसी माँ की तरह है । जब तक हम ईश्वर के पेट में अर्थात उसमें स्थित रहते है तब तक हमारी परेशानी उसकी परेशानी होती है । उसे हमारी बराबर चिंता लगी रहती है । जो भी उसकी शक्तियों है, हममे व्याप्त रहती है । हमें उससे सीधा पोषण मिलता रहता है । लेकिन जैसे ही हम इस दुनिया मैं आते है । धीरे – धीरे सांसारिक माँ की तरह उस ईश्वर रूपी माँ से भी दूर होते चले जाते है । और एक समय ऐसा आता है जब हम मकड़ी की तरह अपने ही बनाये हुए जाल में बुरी तरह से फस जाते है । फिर रोते है, चिल्लाते है तरह – तरह के देवी – देवताओं के आगे नाक रगड़ते फिरते है । सांसारिक माँ तो बिचारी दूर होने पर मदद भी नहीं पाती है किन्तु ईश्वर मदद करना तो चाहता है लेकिन हम हमारे अहम् के कारण उसकी मदद से भी वंचित रह जाते है । मैं नहीं कहता कि देवी – देवताओं की उपासना नहीं करनी चाहिए । करों ! लेकिन ईश्वर को जानकर करों । अगर आप ईश्वर के रूप में विभिन्न देवी – देवताओं को पूजते है तो कोई प्रॉब्लम नहीं । लेकिन यदि आप अन्धविश्वास में पूजते है तो लगे रहो । कोई फायेदा नहीं ।
 
जिस तरह माँ को खुश करने के लिए आपको उसकी पूजा नहीं करनी होती, केवल प्रेम करना होता है, सम्मान करना होता है, आदर करना होता है । बस यही आपको ईश्वर के लिए करना है । आप माँ को कोई उपहार दे न दे लेकिन यदि आप माँ का आदर करते है तो वह आपसे खुश रहेगी । इसके विपरीत यदि आप दुनिया भर के उपहार लाकर रख दे और माँ को गलियां दे उसका अपमान करें तो क्या वह खुश होगी ? कभी नहीं ! बस यही समझना है । बहुत सरल है ईश्वर को समझना । यदि आप उसकी ख़ुशी को देख सके । यदि आप उसका सम्मान कर सके । यदि आप उससे प्रेम कर सके ।
 
यदि ईश्वर की ख़ुशी को आप जानना चाहते है । उससे प्रेम करना चाहते है तो सोचिये ईश्वर को क्या पसंद है ? सोचिये ?
 
ईश्वर को वह सब पसंद है जो आपको दिल से पसंद है । जो आपको आत्मा से पसंद है । लेकिन यहाँ ध्यान दे । इन्द्रिय सुख और आत्मिक सुख ( आनंद ) में अंतर है । इसको समझने का सबसे बढ़िया तरीका है । जो असीमित आनंद हो वह ईश्वर का आनंद, जो सीमित हो वह इन्द्रियों का सुख है ।
 
जैसे सच बोलने और सुनने में मुझे ख़ुशी होती है, आपको ख़ुशी होती है और दुनिया के हर व्यक्ति को ख़ुशी होती है अर्थात यह असीम आनंद है । इसका सीधा सा मतलब है कि यह ईश्वरीय आनंद है । अर्थात अगर ईश्वर को खुश करना है तो हमेशा सत्य बोलो । हमारे ऋषि मानव मन के बहुत बड़े वैज्ञानिक थे । इस इतनी बड़ी बात को उन्होंने एक छोटे से सूत्र में पीरों दिया – सत्यम वद !
 
इसी तरह आप तुलना करके ईश्वर की ख़ुशी को खोज सकते है !

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