अपूर्व संयम और सहिष्णुता की कहानी

अपने कुशल प्रशासन और बोद्ध धर्म के प्रचारक के रूप में सम्राट अशोक इतिहास प्रसिद्ध है । उनके दो रानियाँ थी – देवी, पद्मावती, कारुवाकी और तिष्यरक्षिता । सम्राट अशोक को रानी पद्मावती से एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम राजकुमार कुणाल रखा गया । राजकुमार कुणाल बड़े ही विनम्र, आज्ञाकारी और पितृभक्त युवराज थे । योग्य होने राजकुमार कुणाल राजकार्य में अपने पिता का हाथ बटाने लगे । प्रजा उनके कार्य से बहुत खुश थी । राजकुमार भी अपना कार्य पुरे मनोयोग से कर रहे थे । इसी बीच उनका विवाह कंचना नाम की एक सुकुमारी से हो गया ।
 
सम्राट अशोक की छोटी रानी तिष्यरक्षिता अत्यंत कामातुर और सम्राट से उम्र में बहुत छोटी थी । राजकुमार की सुन्दर आँखों को देखकर वह उस पर मोहित हो गई । एक दिन उसने अवसर देखकर राजकुमार कुणाल के समक्ष प्रणय प्रस्ताव रखा । लेकिन राजकुमार कुणाल तिष्यरक्षिता का भी उतना ही सम्मान करते थे जितना अपनी सगी माँ का । अतः उन्होंने उसका प्रणय प्रस्ताव ठुकरा दिया ।
 
कुणाल द्वारा ठुकराए जाने को तिष्यरक्षिता बर्दाश्त न कर सकी । वह स्वयं को अपमानित महसूस कर रही थी । क्रोध से लाल होकर उसने कुणाल को चेतावनी दी कि – “या तो मेरा प्रस्ताव मान अन्यथा मैं तेरी आंखे निकलवा दूंगी ।” पितृभक्त राजकुमार कुणाल ने साफ मना कर दिया कि – “माँ ! ऐसा नहीं हो सकता, ये पाप है, आपका हर दण्ड मुझे सहर्ष स्वीकार है ।”
 
इस घटना के बाद से तिष्यरक्षिता हर दिन अपने अपमान का बदला लेने का अवसर देखने लगी । संयोगवश कुछ दिनों बाद तक्षशिला पर कुछ विद्रोहियों ने हमला कर दिया । उस समय सम्राट अशोक बीमार चल रहे थे । रानी ने अवसर देख सम्राट को सलाह दी कि राजकुमार कुणाल को भेज दिया जाये । सम्राट ने कुणाल को तक्षशिला भेज दिया । राजकुमार अपनी भार्या कंचना को लेकर तक्षशिला के लिए कुच कर गये ।
 
राजकुमार कुणाल ने जाकर सभी विद्रोहियों का सफाया कर दिया और विजय ध्वज फहराया । तभी तिष्यरक्षिता ने महाराज की मोहर लगाकर सेनापति के नाम एक पत्र लिखा, जिसमें राजकुमार कुणाल की आंखे निकालकर हत्या करने का सख्त आदेश दिया गया था । पत्र पढ़कर सेनापति भयभीत हो गया । वह दोड़ता हुआ राजकुमार के पास आया और बोला – “ देखो ! महाराज ने क्या पत्र भेजा है ?”
 
पत्र पढ़कर राजकुमार समझ गया कि यह तिष्यरक्षिता का काम है । उन्होंने सेनापति से कहा कि “ महाराज की आज्ञा का पालन करो ।”
 
पहले तो सेनापति डर गया लेकिन जब राजकुमार कुणाल ने राजधर्म का वास्ता दिया तो सेनापति ने राजकुमार की आंखे फोड़ दी । लेकिन फिर भी वह उसे मार नहीं सका और ऐसे छोड़कर लौट आया ।
 
अब राजकुमार कुणाल और उनकी पत्नी कंचना दोनों अकेले रह गये था । राजकुमार अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर चलते और घर – घर जाकर गीत गाकर अपना निर्वाह करते । कई दिनों बाद भटकते – भटकते यह दोनों पाटलिपुत्र आ पहुंचे । एक रात राजकुमार ऐसे ही गा रहे थे कि उनकी आवाज सम्राट अशोक के कानों में पड़ी । सम्राट अशोक ने तुरंत उन्हें बुलवाया ।
 
तब महाराज को इस घटना की खबर हुई तो उन्होंने तिष्यरक्षिता को जिन्दा जला देने की घोषणा की । किन्तु राजकुमार कुणाल ने अपनी छोटी माँ के लिए महाराज से क्षमा याचना की ।

इसे कहते है अपूर्व संयम और सहिष्णुता ।

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