अपना स्वभाव बदले – दो लघुकथाएं

“जैसा आपका स्वभाव होता है, वैसा ही आपका प्रभाव होता है” – इस तथ्य के सत्य को यदि आप परखना चाहते है तो सूक्ष्म दृष्टि से स्वयं का या अपने निकटवर्ती लोगों का अध्ययन करना शुरू कर दीजिये । आप पाएंगे कि यह बात शत प्रतिशत सत्य है । लेकिन कैसे ? आइये जानते है !
 
स्वभाव अर्थात वह गुण (जैसे शांत, समझदार, मृदुभाषी, सत्यवादी, धैर्यवान, सहिष्णु, ईमानदार, ब्रह्मचारी, पवित्र आदि ) अथवा दोष (जैसे क्रोधी, लोभी, लालची, लम्पट, झूठा, धोखेबाज, बेईमान, कपटी आदि ) जो किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को इंगित करते है, उसका स्वभाव कहलाते है ।
 
मनुष्य और जानवरों में सबसे खास अंतर यही होता है कि “मनुष्य यदि चाहे तो इच्छानुसार अपने स्वभाव को बदल सकता है, जबकि सामान्यतया जानवर अपनी मूल प्रकृति को बदलने में असफल रहते है ।” जैसे बिच्छू कभी डंक मारना नहीं छोड़ता, कितना ही समझा दो कुत्ता कभी भोकना नहीं छोड़ता, सांप कभी डसना नहीं छोड़ता और शेर कभी मांस खाना नहीं छोड़ता लेकिन मनुष्य अपनी इच्छानुसार अपना स्वभाव बना सकता है । इसीलिए मनुष्य जीवन को दुर्लभ कहा गया है, क्योंकि मनुष्य योनी को छोड़कर बाकि सभी योनियाँ भोग योनी के अंतर्गत आती है ।
 
लेकिन दुर्भाग्य कि मनुष्य इस सत्य को नहीं समझ पा रहा और पाशविक प्रवृतियों के वशीभूत होकर मनुष्य जीवन रूपी इस दुर्लभ सुअवसर को कोड़ियों के मोल खो रहा है । मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष के जंजाल में ऐसा फसा है कि इनसे निकलना तो दूर, निकलने के लिए सोचता तक नहीं ।
“जैसा हमारा स्वभाव होता है, वैसा ही हमारा प्रभाव होता है” इस तथ्य का सत्य आप साधू – संतो या ऋषि – मुनियों के संग रहकर परख सकते हो । जिस व्यक्ति का स्वभाव शांत और योगी प्रवृति का होता है, उसके साथ रहने, बातचीत करने मात्र से मन शांत हो जाता है ।
 
हमारे स्वभाव में एक विशेष प्रकार का चुम्बकत्व होता है, जो हमारे विचारो के अनुरूप होता है । यदि हमारे विचार सात्विक है तो वह चुम्बकत्व या ऑरा हमारे निकटतम व्यक्तियों पर भी सात्विक प्रभाव डालेगा । इसके विपरीत यदि हमारे विचार दुष्ट सोच से दूषित होंगे तो दूसरों पर भी वैसा ही प्रभाव डालेंगे ।
इसी सन्दर्भ में दो प्रेरणाप्रद लघु कथाएँ निम्न है, जो कुछ हद तक आपको यह तथ्य हृदयंगम करने में सहायक होगी ।

स्वभाव का प्रभाव – मछुआरे की कहानी

एक मछुआरा प्रतिदिन सुबह – सुबह नदी किनारे जाकर अपना जाल डाल देता था और शाम के समय जाकर जाल निकलता था । उसमें मछलियों के साथ कुछ केंकड़े भी फंस जाया करते थे । मछुआरा केंकडो और मछलियों को अलग – अलग टोकरी में लेकर बाजार बेंच आता था ।
 
हमेशा की तरह मछुआरा एक दिन मछलियों और केंकड़ो को अलग – अलग टोकरी में डाल रहा था । मछलियों वाली टोकरी पर तो वह मछली डालते ही ढक्कन लगा देता था जबकि केंकड़ो वाली टोकरी पर कोई ढक्कन नहीं था । उसे वैसे ही खुला छोड़ रखा था ।
 
तभी एक व्यक्ति नदी किनारे टहलता हुआ उसके पास आया और बोला – “ अरे भाई ! क्या इरादा है ? क्यों अपनी दिनभर की मेहनत पर पानी फेरना चाहते हो ?”
 
मछुआरा अचानक उस अजनबी की आवाज सुनकर चौंक गया और बोला – “ क्यों क्या हुआ ?”
 
वह व्यक्ति बोला – “ भाई ! तुमने मछलियों की टोकरी को तो ढका है, लेकिन केंकड़ो की टोकरी खुली ही छोड़ रखी है । जरा देखो तो ! केंकड़े कैसे बाहर निकलने को मचल रहे है, अभी थोड़ी ही देर में सभी बाहर निकलकर तितर – बितर हो जायेगे ।”
 
यह सुनकर मछुआरा हंसने लगा और बोला – “ श्रीमान ! आप निश्चिन्त रहिये ! मैं इन केंकड़ो के स्वभाव से भली प्रकार परिचित हूँ । ये रातदिन उछल कूद भले ही करते रहे, लेकिन इस टोकरी के चंगुल से आजाद नहीं हो सकते । जब तक इसमें एक से अधिक केंकड़े है, इनमें से के भी केंकड़ा बाहर नहीं निकल सकता । क्योंकि जैसे ही एक केंकड़ा बाहर निकलने की कोशिश करेगा, दूसरा कोई उसकी टांग खींचकर उसे अन्दर गिरा देगा ।”
 
यह बात उस अजनबी को समझ आ गई और वह मछुआरे की बुद्धिमत्ता की वाह – वाही करके चल दिया ।

संगत का असर

एक पेड़ पर तोते के दो बच्चे रहते थे । दोनों सगे भाई दिखने में सुन्दर और लगभग एक जैसे थे । संयोग से एक दिन जोर की आंधी आई और दोनों भाई को उड़ा ले गई । एक भाई तो जाकर चोरों के इलाके में गिरा और एक भाई ऋषि मुनियों के आश्रम में जाकर गिरा । चोरों ने उस बच्चे को अपने तरीके से खिलाया – पिलाया और पाल – पोसकर बड़ा किया । जबकि ऋषि – मुनियों ने उसके भाई को अपने तरीके से पाल – पोसकर बड़ा किया ।
 
धीरे – धीरे कई वर्ष बीत गये । एक दिन एक राजा शिकार के लिए जंगल में निकला । घूमते – घूमते वह थक गया अतः उसने विश्राम करने की सोची । पास के ही सरोवर से पानी पिया और एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगा । तभी कर्कश स्वर में एक तोता बोला – “ अरे कोई है ? यह व्यक्ति बड़ा ही मालदार मालूम होता है । जल्दी आओ और इसे पकड़ लो, लुट लो और मार डालो ।” यह सुनकर राजा तुरंत उठा और अपना रथ लेकर भागा । वह भागते – भागते बहुत दूर निकल गया । तभी अचानक उसे एक दुसरे तोते की आवाज सुनाई दी – “ आइये राजन ! आपका स्वागत है, अभी तो सभी ऋषि – मुनि भिक्षाटन के लिए गये है । आप आइये और आश्रम में बैठिये और जलपान करके विश्राम कीजिये ।”
 
तभी आश्रम के ऋषि – मुनि भी आ गये । राजा ने ऋषि – मुनियों को प्रणाम किया और आश्चर्य से पूछा – “ मुनिवर ! अभी कुछ समय पहले मैंने एक ऐसा ही तोता देख था जो बहुत ही दुष्ट जान पड़ रहा था । वह मुझे बहुत सारे अपशब्द बोलकर लूटकर मार डालने को बोल रहा था । जबकि जब मैं आपके आश्रम में आया तो आपके तोते ने बड़े ही आदर सत्कार पूर्वक मेरा स्वागत किया । आखिर इन दोनों तोतो का क्या रहस्य है ?”
 
यह सुनकर महर्षि मुस्कुराते हुए बोले – “ राजन ! ये दोनों तोते सगे भाई है, इसलिए दिखने में एक जैसे दीखते है, लेकिन वह तोता चोरो के संपर्क में रहने से दुष्ट हो गया और ये तोता हमारे संपर्क में रहने से मुनियों की तरह मीठा बोलने वाला हो गया है । यह संगत का प्रभाव है राजन !”
 
शिक्षा – यह कहानियाँ स्वभाव और संगत के प्रभाव और महत्त्व को ध्यान में रखते हुए सृजन की गई है । अच्छी संगत से अच्छा स्वभाव बनाया जा सकता है और अच्छे स्वभाव से अच्छी संगत बनाई जा सकती है ।

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