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अपनी गलती को स्वीकार करें | चतुर माली की कहानी

एक समय की बात है, एक गाँव में एक माली रहता था । माली ने अपने बगीचे में तरह – तरह के सुन्दर और रंग – बिरंगे फुल लगा रखे थे । वह प्रतिदिन सुबह से शाम तक बगीचे की साफ – सफाई और देखभाल करने में लगा रहता था ।

माली रोज सुबह फूलों की टोकरियाँ भर लेता था और नजदीक के बाजार में बेच आता था । जब कभी भी जहाँ कहीं भी उत्सव और त्यौहार होता था । आयोजक माली से फूलों की व्यवस्था करने के लिए कहते तो माली अपने नौकरों के साथ फूलों की टोकरियाँ लेकर वहाँ पहुँच जाता था ।

एक दिन की बात है । राजमहल में उत्सव था । राजा ने पुरे राजमहल को सजाने के लिए सौ टोकरी फुल मंगवाएं । माली सुबह जल्दी उठा और अपने नौकरों को लेकर बगीचे से ताजे फुल चुनने लगा । सुबह होते – होते सौ टोकरियाँ फूलों की भरकर वह राजमहल की ओर रवाना हो गया ।

संयोग से उसदिन राजमहल में शाही भोज था । इसलिए कोई भी नौकर बगीचे में नहीं रुका । जब बगीचे में कोई नहीं था तब कहीं से एक गाय बगीचे में घुस गई और चरने लगी । भरपेट चरने के बाद जब गाय बाहर निकल रही थी, तभी माली आ पहुँचा । उसे गाय पर बहुत गुस्सा आया । गुस्से में आकर उसने गाय पर लठ बरसाना शुरू कर दिया । गाय बूढी थी, इसलिए जल्द ही प्राण त्याग दिए ।

थोड़ी ही देर में माली गौ हत्या का दोषी हो गया । थोड़ी ही देर में बात पुरे गाँव में फेल गई । जब यह बात राजा तक पहुँची तो उसने अपने सैनिकों को भेजा और माली को बंदी बना लिया ।

दुसरे दिन माली को राजदरबार में पेश किया गया । दोष इतना संगीन था कि किसी से कुछ पूछने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी । अतः राजा ने माली को एक वर्ष तक एक सहस्त्र गायों के भोजन की व्यवस्था करने का दण्ड दिया ।

तब माली बोला – “ यदि महाराज की आज्ञा हो तो मैं अपनी सिफारिश में कुछ कहना चाहता हूँ ।” राजा ने इजाजत दे दी ।

माली बड़ा ही चतुर था । उसने कहा – “ महाराज ! बेशक गाय की हत्या मेरे हाथ से हुई है, लेकिन आप तो जानते ही है – “ शरीर इन्द्रियों के अधीन होता है और इन्द्रियाँ इंद्र के अधीन है ।” ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा गया है । इसलिए भले ही गाय मेरे हाथों से मरी हो किन्तु उसका पाप इंद्र को लगता है । उस दिन के लिए इंद्र के आने तक फैसला स्थगित कर दिया गया ।

जब यह बात इंद्र तक पहुँची तो वह माली की चालाकी समझ गया । उसने धूर्त माली को सबक सिखाने की सोची । इंद्र ने एक ब्राह्मण का भेष बनाया और माली के बगीचे में जा पहुँचा ।

ब्राह्मण ने बगीचे को चारों ओर से देखा । बगीचा बहुत ही सुन्दर और रंग – बिरंगे फूलों की खुशबु से महक रहा था । वह माली के पास खड़ा होकर उसकी सुझबुझ और मेहनत की भूरि – भूरि प्रशंसा करने लगा । ब्राह्मण के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर माली बड़ा प्रसन्न हुआ ।

ब्राह्मण वेशधारी इंद्र ने माली से पूछा – “ इस बगीचे को इतना सुन्दर किसने बनाया है और इसका लाभ कौन लेता है ?”

माली प्रसन्नता पूर्वक बोला – “ मैंने ही अपने हाथों से इस सुन्दर बगीचे को सींचा है और मैं ही इसका मालिक हूँ अतः इसका लाभ भी मुझे ही मिलता है ।”

इतना सुनते ही इंद्र अपने असली रूप में आ गया और बोला – “ जब तुम्हारे हाथों से सींचने के कारण बगीचे के मालिक तुम हुए और उसका लाभ तुम्हे मिलता है तो गाय की हत्या भी तो तुम्हारे ही हाथ से हुई, उसके पाप का भागी मुझे क्यों बना रहे हो । अब या तो तुम राजा द्वारा निर्धारित एक सहस्त्र गायों के भोजन का दण्ड दो या फिर अपना ये बगीचा मुझे दे दो ”

माली समझ चूका था कि अब उसकी दाल नहीं गलने वाली । उसने तुरंत एक सहस्त्र गायों को एक वर्ष तक भोजन कराने का दण्ड स्वीकार कर लिया ।

शिक्षा – इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि यदि हम गलत है तो हमें अपनी गलती बेहिचक स्वीकार कर लेनी चाहिए । जो दूसरों को दोष देने की कोशिश करता है । अंततः परिणाम उसको स्वयं ही भुगतना पड़ता है । कर्म सिद्धांत से कोई नहीं बच सकता है ।

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