March 2018

मन को काबू में कैसे करें | मन को वश में करने के उपाय

मन की चंचलता सर्व विदित है । अध्यात्म सागर पर भी कई बार लोग प्रश्न करते है कि मन को कैसे वश में किया जाये । क्या करें कि मन हमारे काबू में रहे । तो आइये जानते है कि मन को अपने काबू में कैसे रखा जा सकता है – सबसे पहला काम, जो […]

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पूर्वजन्म का रहस्योद्घाटन | राजा भोज और हँसी का रहस्य

ऐतिहासिक किस्से कहानियों में राजा भोज के किस्से अक्सर सुनने को मिलते है । उन्हीं में से एक दृष्टान्त इस प्रकार है । एक बार की बात है कि राजा भोज को उनकी प्रिय रानी रगड़ – रगड़कर स्नान करवा रही थी । शीतल जल और रानी के कोमल हाथों का स्पर्श राजा भोज को

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प्रेय से श्रेय की ओर | याचक प्रेमी और प्रेमिका मधुलिका

एक ब्रह्मचारी का जीवन अथाह ज्ञान से संपन्न होता है, लेकिन उसमें भी अनुभव की कमी होती है । स्नातक कपिल की मनःस्थिति भी कुछ ऐसी ही थी । नित्य की तरह आज भी भिक्षु कपिल नगर में घूम – घामकर आया और नगरसेठ प्रसेनजित के द्वार आकर भिक्षा के लिए गुहार लगाई – “भवति

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भूत – प्रेत की सच्ची घटना | क्या वो चुड़ेल थी ?

आज के इस लेख मैं भूत – प्रेत की एक सच्ची घटना का उल्लेख करूंगा, जो मैं और मेरे दो दोस्तों के साथ घटित हुई है । जिससे उन लोगों का भ्रम दूर हो सके, जो भूत – प्रेतों में विश्वास नहीं करते । यह लेख मैं किसी को डराने या भूत – प्रेतों के

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महान वैज्ञानिक नागार्जुन और अमृत की खोज

प्राचीन समय से लेकर अब तक हर कोई मृत्यु के भय से आक्रांत है । इसी भय से मुक्ति पाने के लिए कुछ वैज्ञानिको ने समय – समय पर कार्य किया । जिनमें से प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक नागार्जुन भी एक थे । इतिहास के अनुसार नागार्जुन सन १०५५ में ढांक नामक नगर के सम्राट हुआ

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राजा भोज का स्वप्न और सत्य का दिग्दर्शन

राजा भोज उनके समय के बड़े ही साहसी, प्रतापी और विद्वान राजा थे । कहा जाता है कि राजा भोज ने अपने समय में सभी ग्रामों और नगरो में मंदिरों का निर्माण करवाया था । राजा भोज प्रजा की सुख सुविधाओं का बड़ा ही खयाल रखते थे । इतिहास से यह भी विदित होता है

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शिष्य की चंचलता और मृत्यु का सत्य

एक बार की बात है कि एक जंगल में एक महात्मा रहते थे । महात्माजी सुबह शाम अपने शिष्यों को पढ़ाते – लिखाते और बाकि समय आश्रम के कार्यों व अपने योगाभ्यास में व्यस्त रहते थे । खाने के लिए जंगल से कंदमूल शिष्य ले आते और नदी से पानी की व्यवस्था जुटा लेते ।

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पूण्य का तराजू | एक शिक्षाप्रद कहानी

कुशीनगर का राजा लोगों के पूण्य खरीदने के लिए प्रसिद्ध था । धर्मराज ने उसकी धर्मपरायणता और सत्य निष्ठा से प्रभावित होकर उसे एक पूण्य का तराजू दिया था, जिसके एक पलड़े को छूकर जो कोई भी अपने पूण्य कर्मों का स्मरण करता, दुसरे पलड़े में दैवीशक्ति से उस पूण्य कर्म के बराबर स्वर्ण मुद्राएँ

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अविचल धैर्य की परीक्षा | तपस्वी और देवर्षि नारद की कहानी

एक बार नारदजी पृथ्वीलोक पर घुमने आये । एक जंगल से गुजर रहे थे कि रास्ते में एक तपस्वी बैठा तपस्या कर रहा था । उसने नारदजी को देखा तो साष्टांग दण्डवत् किया और पूछा – “ महर्षि कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो ?”   नारदजी मुस्कुराते हुए बोले –

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चोर को ईश्वर का दर्शन कैसे ?

किसी गाँव में दौलतराम नाम का चोर रहता था । लेकिन दौलत के नाम पर उसके पास फूटी कौड़ी नहीं थी । काम – धंधे के लिए बहुत हाथ – पैर मारे लेकिन कहीं से कोई जुगाड़ नहीं हो पाया । जब कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया तो उसने चोरी कर – करके अपना घर

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