महाभारत की कहानियाँ

कर्ण का वध कैसे हुआ

कर्ण के जीवन की दो बड़ी गलतियाँ क्या है | कर्ण वध महाभारत

कभी कभी अनजाने में हमसें ऐसी गलतियाँ हो जाती है, जिन्हें लाख कोशिशों के बावजूद भी सुधारा नहीं जा सकता । ऐसा ही कुछ अंगराज कर्ण के साथ हुआ था । अंगराज कर्ण ने अपने जीवन में दो गलतियाँ ऐसी की थी । जिसका परिणाम अंत में उन्हें मृत्यु के रूप में मिला । कर्ण […]

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देवी गंगा और शांतनु

गंगापुत्र भीष्म के जन्म का रहस्य | महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप देना

प्राचीन समय की बात है । राजर्षि प्रतीप के पुत्र महाराजा शान्तनु इंद्र के समान तेजस्वी थे । शान्तनु अपने राज्य के हिंसक पशुओं का शिकार करने के उद्देश्य से अक्सर जंगल में घूमते रहते थे । राजा शान्तनु यदा कदा जंगली भैसों का शिकार करते हुए परम पावनी नदी गंगा के किनारे जा पहुँचते

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शांतनु और गंगा

राजा महाभिष को ब्रह्माजी का शाप | राजा शान्तनु के जन्म की कथा

प्राचीन समय की बात है । इक्ष्वाकुवंश में महाभिष नामक राजा प्रसिद्ध था । राजा महाभिष बड़ा ही सत्यानुरागी और धर्मपरायण था । उसने एक सहस्त्र अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञ करके देवराज इन्द्र को प्रसन्न कर लिया । इस प्रकार यज्ञों के पूण्य फल के रूप में राजा को स्वर्गलोक की प्राप्ति हो गई

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महाभारत के कर्ण का जन्म कैसे हुआ | नर और नारायण के अवतार की एक रहस्यमयी कथा

यह प्रश्न आपके दिमाग में अवश्य आये होंगे कि महारानी कुंती का ज्येष्ठ पुत्र और परम तेजस्वी सूर्य का अंश होते हुए कर्ण को महाभारत में इतना अपमान और ज़िल्लत क्यों सहनी पड़ी ? आखिर ऐसी कोनसी दुश्मनी थी अर्जुन और कर्ण में जो उसने कभी भी अपने बड़े भाई को सम्मान की दृष्टि से

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कर्ण और अर्जुन की महानता | महाभारत के दो रोचक दृष्टान्त

अर्जुन की महानता महाभारत का एक दृष्टान्त है । एक बार कौरव सेना में कुछ बातचीत हुई, जिसकी सुचना कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर के गुप्तचरों ने उनको दी । तब युधिष्ठिर ने सभी भाइयों को एकांत में बुलाकर कहा – “ कौरव सेना में नियुक्त मेरे गुप्तचरों ने समाचार दिया है कि गतदिवस रात्रि में दुष्टबुद्धि दुर्योधन

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अर्जुन को अप्सरा उर्वशी का शाप | अर्जुन की संयमशीलता

एक बार अर्जुन के पिता देवराज इंद्र की अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ अर्जुन से मिलने की इच्छा हुई । अतः उन्होंने अपने दिव्य रथ और मातलि के साथ अर्जुन को स्वर्ग में आने का आमंत्रण भेजा । इंद्रकुमार अर्जुन ने भी देवराज के आमंत्रण का सहर्ष स्वागत किया और स्नानादि से पवित्र होकर सैकड़ों

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धनवान बनने का आध्यात्मिक रहस्य | आध्यात्मिक कहानी

किसी के पास बहुत अधिक धन होने से वह धनवान नहीं हो जाता, बल्कि जिसका ह्रदय बड़ा होता है, वही असली धनवान होता है । ह्रदय बड़ा होने से मतलब है – “दूसरों को खुश देखकर ख़ुशी होना और दूसरों को दुखी देखकर दुखी होना ।” जब आपकी करुणा जाग पड़े तो समझो, कि आप

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युधिष्ठिर का स्वर्गारोहण | पांडवो के विकर्म का फल

दुर्योधन की जिद के रहते पाण्डवों ने कोरवों का सफाया कर दिया । महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हो गया । राज्य में नये राजा के आने की ख़ुशी में उत्सव तो मनाये गये लेकिन इस महाभारत के असली सूत्रधारों के मन विषाद से भरे हुए थे ।   पाण्डवों को

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ययाति और शर्मिष्ठा का एकांत मिलन

राजा ययाति, देवयानी से विवाह करके शर्मिष्ठा को साथ लिए अपनी राजधानी लौटे । वहाँ पहुंचकर राजा ययाति ने देवयानी को अपने अन्तःपुर में स्थान दिया तथा वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा को अपने उद्यान में महल बनवाकर सभी सुविधाओं के साथ रखा । देवायनी अक्सर उद्यान में विहार के लिए शर्मिष्ठा के पास आ जाती

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शर्मिष्ठा और देवयानी की लड़ाई

देवयानी के पिता शुक्राचार्य राजा वृषपर्वा के गुरु थे और शर्मिष्ठा राजा वृषपर्वा की पुत्री थी । अतः देवयानी और शर्मिष्ठा दोनों सखी थी । एक बार की बात है कि देवयानी और शर्मिष्ठा अपनी सखियों के साथ एक उद्यान में खेल रही थी । एक राजकन्या तो एक ब्राह्मण कन्या दोनों ही अद्वितीय सुंदरी

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