अध्यात्म सिद्धांत

नाम जप की महिमा कहानी

श्रद्धा नहीं तो नाम जप बेकार | नाम जप की महिमा

एक गाँव में एक साधू महाराज रहते थे । साधू महाराज जहाँ भी जाते, नाम जप पर उपदेश देते थे । साधू महाराज की नाम जप पर अगाध श्रृद्धा को देखकर कई लोगों ने उनसें राम नाम की दीक्षा ली । कुछ लोग तो उनके सानिध्य में रहकर ईश्वर का अनुग्रह पाने के लिए उनके […]

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सच्चा आत्मज्ञानी कौन | आत्मज्ञान की कहानियाँ

एक बार काकभुशुण्डि जी के मन में यह जिज्ञासा हुई कि “ क्या कोई ऐसा दीर्घजीवी व्यक्ति भी हो सकता है, जो शास्त्रों का प्रकाण्ड विद्वान हो, लेकिन फिर भी उसे आत्मज्ञान न हुआ हो । अपनी इस जिज्ञासा का समाधान पाने के लिए वह महर्षि वशिष्ठ से आज्ञा लेकर ऐसे व्यक्ति की खोज में

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माला में 108 मनके ही क्यों होते है | Why 108 Beads in Mala in Hindi

किसी भी प्रकार की साधना और उपासना में मन्त्र जप का अपना ही अलग स्थान है । वैदिक मन्त्रों से लेकर प्रचलित राम, कृष्णा आदि कोई भी मन्त्र क्यों न हो, माला के माध्यम से मन्त्र जप को प्रभावी बनाया जाता है । वैसे मन्त्र जप बिना माला के भी किया जा सकता है, लेकिन

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कर भला तो हो भला | परोपकार का फल पर कहानी

बचपन में ही दादा – दादी का साया छीन गया । जवान होते – होते माँ – पिताजी एक दुर्घटना में चल बसे । ना भाई का सहारा न बहन का प्यार, ऐसे जी रहा था आनंद कुमार । आनंद एक ऐसा युवक जिसका इस दुनिया में कोई नहीं, लेकिन दिल ऐसा कि सबको अपना

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तत त्वं असि का अर्थ | ऋषि उद्दालक और श्वेतकेतु का संवाद

छान्दोग्योपनिषद् की एक कथा है । बात उस समय की है जब धोम्य ऋषि के शिष्य आरुणी उद्दालक का पुत्र श्वेतकेतु गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करके अपने घर आया । एक दिन पिता आरुणी उद्दालक ने श्वेतकेतु से पूछा – “ श्वेतकेतु ! अभी और वेदाभ्यास करने की इच्छा है या विवाह ?”   पिता

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पक्का साधक कैसे बने | एक हलवाई की कहानी

एक बार एक गुरूजी अपने शिष्यों को साधना का उपदेश दे रहे थे और कह रहे थे कि पक्के साधक बनो, कच्चे साधक नहीं । कच्चे – पक्के साधक की बात सुनकर एक नये शिष्य को असमंजस हुआ । जिज्ञासावश आखिर उसने पूछ ही लिया – “ गुरूजी ये पक्का साधक कैसे बनते है ?”

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अंतःकरण चतुष्टय क्या है | मन बुद्धि चित्त और अहंकार क्या है

मोटे तौर पर यदि देखा जाये तो मानव शरीर जड़ और चेतन का सम्मिलित रूप है । मानव शरीर के इन दोनों भागों को स्थूल और सूक्ष्म शरीर में बांटा जा सकता है । स्थूल शरीर के अंतर्गत हाड़ – मांस और रस – रक्त से बनी यह मानव आकृति आती है । लेकिन स्थूल

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शक्ति और सिद्धियों का आधार – संयम

शक्ति, उर्जा, सिद्धियों, विभूतियों और अतीन्द्रिय क्षमताओं के बारे में आपने अवश्य पढ़ा, सुना या देखा होगा । लेकिन क्या आप जानते है कि ये कहाँ से और कैसे आती है ? शायद और शायद नहीं ! तो आइये जानते है कि क्या है, क्या है इनका आधार, सिद्धांत और रहस्य ?   हो सकता

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क्या शक्तियों का आदान – प्रदान संभव है | शक्तिपात का सच

जिस तरह किसी व्यक्ति की भौतिक सम्पन्नता या विपन्नता का आंकलन उसकी भौतिक सम्पति और धन से किया जाता है, ठीक उसी तरह किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक सम्पन्नता या विपन्नता का आंकलन उसकी आध्यात्मिक शक्ति (प्राण उर्जा) से किया जाता है । जिस व्यक्ति में जितनी अधिक आध्यात्मिक उर्जा होगी, वह उतना ही अधिक आध्यात्मिक

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कथनी और करनी में अंतर की सजा

प्राचीन समय की बात है, महामुनि कोतस्य कालिन्दी नदी के तट पर प्रवचन किया करते थे । नित्य उनके प्रवचन से लाभान्वित होने के लिए आस – पास के नगरवासी प्रतिदिन एकत्र होते है । नगरवासी ही नहीं बल्कि जंगल के जानवर व पशु – पक्षी भी महामुनि का प्रवचन सुनने आते थे ।  

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